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________________ श्रीकल्प जलधर-घनसार-हार-तुपार-नीर-क्षीरसागर-निशाकरकर-रजतगिरिवर-पाण्डुरशरीरं, भ्रमन्मनु-गुञ्ज-न्मिलिन्द-वृन्दा-लङ्कृत-सुगन्ध-बन्धुर-दानधारा-कलित-कपोल-युगल-मूल-रुचिरं पुरन्दर-कुञ्जरवर-सहोदरं ललामलीलाकर जल-संवलिता-ऽऽडम्बर-करम्बित-विपुल-जलधर-गर्जित-गम्भीर-मञ्ज-निनदं नयनसुखदं गजवरसकल-लक्षण-लक्षितं वरोरु मङ्गलं करिवरं पश्यति ॥सू०१५॥ टीका-'तत्थ खलु तिसला' इत्यादि-तत्र-चतुर्दशमु महास्वप्नेषु, खलु वाक्यालङ्कारे, त्रिशला क्षत्रियाणी तत्पथमतया स्वमप्रथमत्वेन-चतुर्दशसु महास्वप्नेषु प्रथमं स्वप्नं करिवरं पश्यति-इति सम्बन्धः । कीदृशं करिवरमित्याह-चतुर्दन्त-मित्यादि । चतुर्दन्त-दन्तचतुष्टयवन्तं, पुनः समुत्तुङ्गाङ्गम् अतिविशालशरीरम्, तथा कल्पमञ्जरी टीका ॥४०४॥ गजस्वमवर्णनम्. जलधर (मेघ), कपूर, हार, वर्फ, जल, क्षीरसागर, चन्दमा की किरण तथा रजत पर्वत के समान शुभ्र था। तथा जो उडते हुए तथा मनोहर गुंजार करते हुए भ्रमरों से सुशोभित सुगन्धयुक्त मदजलधारा से सम्पन्न कपोलों (गण्डस्थलों) के कारण मनोहर था। वह गज इन्द्र के हाथी (ऐरावत) जैसा प्रतीत होता था। सन्दर लीला करनेवाला था। जल से परिपूर्ण और आडम्बरयुक्त विशाल मेघों की गर्जना के सदृश गंभीर और मनोहर ध्वनि करनेवाला था। नयनों को आनन्द देनेवाला था। श्रेष्ठ गज के समस्त प्रशस्त लक्षणों से सम्पन्न था। उत्तम जांघोंवाला तथा मंगलरूप था ॥०१५॥ टीका का अर्थ-तत्थ खलु तिसला' इत्यादि । उन चौदह महास्वप्नों में से, त्रिशला क्षत्रियाणी ने, प्रथम स्वम में गजराज देखा । वह गजराज किस प्रकार का था सो कहते हैं-वह चार दांतोवाला था। उत्तुंग अंग તથા રજતપર્વતના જે સફેદ હતે. તે ઉડતાં, તથા મનહર ગુંજારવ કરતાં ભમરાઓથી સુશોભિત, સુગ વાળા, મહાજળધારાવાળા કપાળ (ગંડસ્થળો) ને કારણે મનહર હતું. તે ગજ ઈન્દ્રના હાથી (ઐરાવત) જે લાગતું હતું, સુંદર લીલા કરનારો હતા, જળથી પરિપૂર્ણ અને આડમ્બરયુક્ત વિશાળ મેઘાની ગર્જના જેવો ગંભીર અને મનહર ઇવનિ (અવાજ) કરનાર હતો, નયનેને આનન્દ દેનાર હતું, શ્રેષ્ઠ હાથીનાં બધાં પ્રશસ્ત લક્ષણવાળા હતે, ઉત્તમ જાંઘવાળે તથા મંગળ-રૂપવાળે હતો. સૂ૦૧૫ सानो मथ-'तत्थ खलु तिसला' इत्यादि.त्यी महास्वप्नाभाथी, शिक्षा क्षत्रिया, परसा नमा ગજરાજજોયો. તે ગજરાજ કે હવે તે કહે છે-તે ચાર દંકૂશળવાળે હતો. ઊંચા શરીરવાળે તે. જળરહિત મહામેથ,કપૂર, ॥४०४॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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