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________________ श्रीकल्प कल्प मञ्जरी ॥३५॥ टीका छाया-ततः खलु सा देवानन्दा ब्राह्मणी महास्वप्नानां फलं श्रत्वा निशम्य हृष्टतुष्टचित्तानन्दिता तं गर्भ सुख-सुखेन परिवहति। अथ च इमं च खलु केवलकल्यं जम्बूद्वीपं द्वीपम् अवधिना आभौगयन्२ शन्द्रो देवेन्द्रो देवराजः श्रमणं भगवन्तं महावीरं ब्राह्मणकुण्डग्रामे नगरे कोडालसगोत्रस्य ऋषभदत्तस्य ब्राह्मणस्य भार्याया देवानन्दायाः ब्राह्मण्या जालन्धरसगोत्रायाः कुक्षौ गर्भतयाऽवक्रान्तं पश्यति, दृष्ट्वा सिंहासनादभ्युत्तिष्ठति, अभ्युत्थाय करतलपरिगृहीतं दशनखं शिरस्यावर्त मस्तके अञ्जलिं कृत्वा एवमवादी नमोऽस्तु खलु अरिहन्तृभ्यो भगवद्भ्य आदिकरेभ्यः तीर्थकरेभ्यः स्वयंसंबुद्धेभ्यः पुरुषोत्तमेभ्यः मूल का अर्थ--'तए णं सा' इत्यादि । तब वह देवानन्दा ब्राह्मणी महास्वप्नों का फल सुनकर और समझकर हर्षित तथा सन्तुष्ट हुई। उसका चित्त आनन्दित हुआ । वह सुखपूर्वक उस गर्भको वहन करने लगी। इधर सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को अवधिज्ञान से देखते हुए देवेन्द्र देवों के राजा शकेन्द्रने, श्रमण भगवान् महावीर को ब्राह्मणकुंडग्रामनामक नगरमें कोडालगोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी जालन्धरगोत्रवाली देवानन्दा ब्राह्मणी की कँख में गर्भ रूप से आये देखा, देख कर वह सिंहासन से उठ खड़े हुए, उठ कर दोनों हाथ जोड़कर, दसों नख जिसमें मिल गये हैं इस प्रकार दोनों हाथों से आवर्त-प्रदक्षिण करके, मस्तक पर अंजलि धारण करके, इस प्रकार आगे कहे अनुसार बोले नमस्कार हो अरिहन्त भगवन्तों को, धर्म की आदि करने वाले, तीर्थ की स्थापना करने वाले, स्वयं भूबने मथ-तए ण सा' त्या । स्वजाना सु२ ३ सालजी, हवान हा भाता हबत वन આનંદથી પિતાના ગર્ભનું વહન કરવા લાગ્યા. અહિં આખા જંબુદ્વીપને અવધિ જ્ઞાન વડે જેવાવાળા દેવેન્દ્ર દેવોના રાજા શક્રેન્દ્ર, શ્રમણ ભગવાન મહાવીરના જીવને બ્રાહ્મણૂકુંડગ્રામ” નગરીમાં કોડાલગેત્રી અષભદત્ત બ્રાહ્મણની પત્ની જાલંધરગોત્રી દેવાનંદાની કુખમાં અવતરેલાં જોયાં. આ જોઈને સિંહાસન ઉપરથી ઉભા થઈ, બે હાથ જોડી, બને હાથ વડે પ્રદક્ષિણા કરી, માથા પર हायनी मी भूटी सवा लाया અરિહંત ભગવાનને, ધમની શરુઆત કરવાવાળાને, તીર્થ સ્થાપનારને, સ્વયંબધિને, પુરુષોત્તમને, પુરુષોમાં कृत-भगवत्स्तुतिः। ॥३५॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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