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________________ श्रीकल्प कल्प सूत्रे ॥२८२॥ मञ्जरी टीका सेवितं, तत्सर्व मनोवाकायस्त्रिविधं त्रिविधेन व्युत्सृजामि ।९। लोभदोषाद् धनधान्यहिरण्यसुवर्णवास्तुद्विपदचतुष्पदप्रभृतीनां सचित्तानां वा अचित्तानां वा येषां केषां वस्तूनाम् अल्पो वा बहुको वा पूर्व परिग्रहः परिगृहीतः, तं सर्व त्रिविधं त्रिविधेन मनोवाकाययोगेन व्युत्सृजामि ।१०। पूर्व स्त्रीपशुदासदासीधनधान्यहिरण्यसुवर्णभवनवसनादिषु ममत्वं कृतं, तत्सर्व व्युत्मजामि । ११॥ जिहेन्द्रियवशङ्गतेन मया यदि रात्रौ चतुर्विधानामशनपानखादिमस्वादिमानामाहार आहारितः, तद् मनोवाकायैनिन्दामि ।१२। क्रोधमानमायालोभरागद्वेषकलहाऽभ्याख्यानपैमोदना से यदि सेवन किया हो तो तीन करण तीन योग से उसका त्याग करता हूँ। (१०) लोभदोष से प्रेरित होकर धन, धान्य हिरण्य, सुवर्ण, मकान आदि अचित्त तथा दास दासी आदि सचित्त जिन किन्हीं वस्तुओं का अल्प या बहुत जो पूर्वकाल में परिग्रह किया हो उस सबका मन वचन काय से तथा कृत कारित अनुमोदना से त्याग करता हूँ। (११) स्त्री, पशु, दास, दासी, धन, धान्य, हिरण्य, सुवर्ण, भवन, वस्त्र आदि में जो ममताभाव धारण किया हो, उस सबका त्याग करता हूँ। (१२) जिवा-इन्द्रिय के वशीभूत होकर यदि मैं ने रात्रि में अशन पान-खाद्य-स्वाध रूप चार प्रकार का आहार किया हो तो मन वचन काय से उसकी निन्दा करता हूँ। (१३) क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद आदि किसी महावीरस्य नन्दनामकः विंशतितमो भवः। અગર અમલમાં મૂકી હોય તે તે સર્વ પ્રકારના નવ કેટીના દોષની નિંદા કરું છું. (१०) पूर्व णे बोल मने द्वेषथी राधन, धन-धान्य-असत-सोनु-३-मान-विगेरे अयेत વરતુઓ, તેમજ દાસ-દાસી આદિ સચેત ચીજો, અ૯પ અગર બહુમૂલ્યવાળી વસ્તુઓ રહી હોય, અથવા પરિગ્રહ કર્યો હોય, તે સર્વ દોષેની મનવચન-કાયાના નવ પ્રકારથી, દુગું છા કરું છું. (११) श्री-पशु-हास-दासी-धन-धान्य-अवशत-सुपा-यांही-मन-१७ माहिमा भमतामा यो खाय તે તે મમતાભાવને ત્યાગું છું. ૧૨ રસનેન્દ્રિયને વશ થઈ રાત્રીના સમયે, આહાર આદિનું સેવન કર્યું હોય તે તેની મન-વચન छायाना योगी माया छु । (१३) डोध, भान, भाया, बस, रागद्वेष, , मध्याध्यान-५२नी 6५२ भाग यहा', पशु-य-याडी, ॥२८२॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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