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कल्प
श्रीकल्प
सूत्रे ॥१७१॥
कालावसरे काल बाहये प्रथम
क
मञ्जरी
टीका
ल्पिकदेवभ
द्वितीये भवे सौधर्म कल्पे पल्योपमस्थितिकदेवतया उपपन्नः॥ सू०९॥
टीका-"तए णं' इत्यादि ।
ततः तदनु खलु स नयसारः गतेषु-व्यतीतेषु कतिपयेषु-कियत्सु वर्षेषु, विशुद्धध्यानजलविशोधितदुर्भावमला पावनध्यानरूपजलप्रक्षालितकुत्सितभावरूपकिट्टः, अत एव सद्भावभावितात्मा विशुद्धभाववासितान्त:करणः, अत एव मुनिकल्प साधुसदृशः कालमासे कालावसरे कालं कृत्वा, उत्कृष्टभावभृतचेतसा उत्तमभावपूर्णमनसा, मुनिनाथविशुद्धाहारपानप्रदानप्रभावेण, द्वितीये भवे सौधर्मे-तदाख्ये प्रथमे कल्पे=देवलोके पल्योपमस्थितिकदेवतया उपपन्न समुत्पन्नः ॥ सू०९॥ इति श्रीमहावीरस्य नयसारभव-सौधर्मकल्पिकदेवभवेति भवद्वयम् ॥ १-२॥ समान वह नयसार कालमास में काल करके, उत्कृष्ट भावना-परिपूर्णचित्त से मुनिराज को विशुद्ध आहारपानी के दान के प्रभाव से द्वितीयभव में, सौधर्म कल्प में, पल्योपम की स्थिति वाले देव के रूप में उत्पन्न हुआ ॥ मू०९॥
टीका का अर्थ-तएण' इत्यादि । तत्पश्चात् कतिपय वर्षों के बीतने पर, पावनध्यानरूपी नीर से जिसने दुर्भावनारूपी मैल को धो दिया है, इस कारण जिसका चित्त सद्भावनाओं से भावित हो गया है और इस कारण जो साधु के समान हो गया है, ऐसा वह नयसार मृत्यु के अवसर पर शरीर त्याग कर, उत्कृष्ट भावना से परिपूर्ण चित्त से मुनिराजको निर्दोष आहार-पान के दान के प्रभाव से द्वितीय भवमें, सौधर्मनामक प्रथम देवलोकमें एक पल्योपमकी स्थितिवाले देवके रूप में उत्पन्न हुआ ॥ सू०९ ॥ भगवान श्रीमहावीरस्वामीके नयसार और सौधर्मकल्पिक देवरूप दो भवोंका वर्णन ॥ १-२॥
___ भूख भने –'तए 'त्या. त्या२ ४४ वा ५सार थयां , विशुद्ध ध्यान રૂપી જલમાં હમેશા સ્નાન કરતે થકે, દુષ્ટ ભાવેને દૂર કરતે થકે, સદૂભાવથી પ્રેરિત થતે ગૃહસ્થાવાસમાં સાધુ નહિ પણ સાધુ-સરીખું જીવન ગાલતે થકો નયસાર, કાલ આવ્યે કોલ કરીને મરણ વખતે સમાધિએ રહીને, વિશુદ્ધ આહાર પાણીના દાનના પ્રભાવે, બીજા ભવમાં સૌધર્મ દેવલોકમાં પલ્યોપમની સ્થિતિવાળા દેવના मायुष्ये पन्न थयो. (सू०८)
ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામીના નયસાર અને સૌધર્મકલ્પિકદેવરૂપ બે ભવેનું વર્ણન. ૧-૨
महावीरस्य REE नयसार
भव-सौधर्मकल्पिकदेव
भवेति भवद्वयम् ।
॥१७॥
શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧