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________________ श्रीकल्प कल्पमञ्जरी टीका ॥१२१|| अनन्तरमूत्रे ‘खामियं' इत्युक्तम् । क्षमणा च साधुभिः साध्वीभिश्च यथारास्निकं कर्तव्येति सूचयितुमाह मूलम्-कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गयीणं वा अहाराइणियाए खमित्तए वा खमावित्तए वा ॥मू०४१॥ छाया-कल्पते निर्ग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां वा यथारात्निकतया क्षन्तुं वा क्षमयितुं वा ॥मू०४१॥ टीका-'कप्पइ निग्गंथाणं वा' इत्यादि । निर्ग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां वा यथारात्निकतया पर्यायज्येष्ठक्रमेण क्षन्तुम्=तस्कृतमपराधजातं स्वहृदयाद् दुरीकर्तुं वा, क्षमयितुं स्वकृतमपराधजातं तद्धृदयाद् दूरं कारयितुं वा कल्पते इति ॥स्०४१॥ यः साधुः संजातं कलह स्वयमुपशमयति, अन्यैश्च उपशमयति, स्वयं क्षमते अन्यश्च क्षमयति स पिछले सूत्र में 'खामियं' पद आया है। साधुओं और साध्वियों को पर्यायज्येष्ठता के अनुसार क्षमा-याचना करनी चाहिए, यह सूचित करने के लिये मूत्रकार कहते हैं-'कप्पइ' इत्यादि। मूल का अर्थ-साधुओं और साध्वियों को यथारानिक अर्थात् बड़े-छोटे के क्रम से खमतखामणा करना चाहिए ॥सू०४१॥ टीका का अर्थ साधुओं और साध्वियों को संयम-पर्याय की ज्येष्ठता के अनुसार दूसरे के किये हुए अपराधों को क्षमा कर देना चाहिए, अर्थात् हृदय से निकाल देना चाहिए, तथा अपने किये अपराधों के लिए क्षमायाचना करनी चाहिए-दूसरे के हृदय से दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए ॥सू०४१॥ जो साधु उत्पन्न हुए कलह को स्वयं शांत करता है और दूसरों से शान्त करवाता है, स्वयं क्षमा पाच्या सूत्रभा ‘खामिय' ५६ आयु छ. साधु-साध्वीमा पर्यायन्ये ताने मनुसरी क्षमायायना ४२वी नये, ये सूचित ४२वाने सूत्र४२ ४३ छ–“कप्पइ" त्यादि. મૂળને અર્થ-સાધુ-સાધ્વીઓએ યથારાનિક અર્થાતુ નાના–મેટાના ક્રમાનુસાર ખમતખામણાં કરવાં नध्य . (२०४१) ટીકાને અર્થ–સાધુ-સાધ્વીઓએ સંયમ-પર્યાયની જયેષ્ઠતાને અનુસરી બીજાના કરાયેલા અપરાધને ક્ષમા આપવી જોઈએ, અર્થાત્ હૃદયમાંથી દૂર કરવા જોઈએ, તથા પિતાથી થયેલા અપરાધને માટે ક્ષમા યાચના કરવી જોઈએ, બીઝન હદયમાંથી દૂર કરવાના પ્રયત્ન કરવો જોઈએ. (સૂ૦૪૧) જે સાધુ ઉત્પન્ન થયેલા કલહને પિતે શાન્ત કરે છે અને બીજાઓ વડે શાન્ત કરાવે છે, પોતે ક્ષમા કરે શ્રી કલ્પ સૂત્ર:૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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