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________________ श्रीकल्प कल्प मञ्जरी ॥११९॥ पत्रलेखन तु साधुभिर्न कदापि कर्तव्यम्, अतस्तद्विषये आचार्यादीनां पृच्छाऽपि न युज्यते इति पत्रलेखननिषेधं वक्तुमाह मूलम्-नो कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गंधीणं वा सयं पत्तं लेहित्तए ॥ सू०३९॥ छाया--न कल्पते निग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां स्वयं पत्र लेखितुम् ॥ मू०३९॥ टीका-'नो कप्पइ' इत्यादि। निर्ग्रन्थानां वा निग्रन्थीनां वा कस्यचित् साधोः कस्या श्चित् साध्व्याः श्राक्कस्य श्राविकायाः संघस्य च सविधे स्वयं पत्रं लेखितुं न कल्पते इति ॥ सू०३९ ॥ निषिद्धप्रस्तावात् अन्यदपि निषिद्धमाह-- मूलम् --नो कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गंथीणं वा नवं अणुप्पणं अहिगरणं उप्पाइत्तए, पोराणं खामियं विउसमिय अहिगरणं पुणो उईरित्तए ॥मू०४०॥ टीका साधुओं को पत्र कभी लिखना ही नहीं चाहिए, अत एव उस विषय में आचार्य आदि से पूछने का प्रश्न ही नहीं उठता । यहाँ पत्रलेखन का निषेध कहते हैं-'नो कप्पइ' इत्यादि । __ मूल का अर्थ-साधुओं और साध्वियों को स्वयं पत्र लिखना नहीं कल्पता ॥९०३९।। टीका का अर्थ साधुओं और साध्वियों को किसी साधु, किसी साध्वी, श्रावक या श्राविका अथवा संघ के लिए स्वयं पत्र लिखना नहीं कल्पता ॥सू०३९॥ निषिद्ध का प्रसंग होने से अन्य निषिद्ध कार्य कहते हैं-'नो कप्पइ' इत्यादि । સાધુઓએ પત્ર કદિ લખ જ ન જોઈએ, એટલે એ બાબતમાં આચાર્યાદિને પૂછવાનો પ્રશ્ન જ ઊઠત નથી. मही पत्रमनन निषेध ४२i ४९ छ-"नो कप्पइ” त्यादि. મૂળને અર્થ-સાધુ-સાધ્વીઓને જાતે પત્ર લખવાનું ક૯૫તું નથી. (સૂ૦૩૯) ટીકાને અર્થ-સાધુ-સાધ્વીઓને કેઈ સાધુ, સાધ્વી, શ્રાવક યા શ્રાવિકાને માટે અથવા સંઘને માટે પત્ર समय पता नथी. (सू०36) निधन प्रसडापायी की निषिद्धय -"नो कप्पइ"त्या. ॥११९॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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