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________________ कल्पमञ्जरी टीका दिकं वा प्रक्षालयन् निम्रन्थो वा निर्ग्रन्थी वा आचाराव साध्वाचारात् परिभ्रश्यति परिभ्रष्टो भवति । उक्तं च दशवकालिकमत्रे "" कंसेसु कंसपाएसु कुंडमोएसु वा पुणो । श्रीकल्पमूत्रे भुंजतो असणपाणाई, आयारा परिभस्सइ ॥ ॥११॥ छाया-कांस्येषु कांस्यपात्रेषु कुण्डमोदेषु वा पुनः । भुञ्जानोऽशनपानादि आचारात् परिभ्रश्यति ॥” । इति । अत्र 'भुजतो' इत्युपलक्षणम् , तेन गृहस्थसम्बन्धिपात्रे वस्त्रप्रक्षालनस्य उष्णसलिलशैत्यकरणस्य च निषेध इति ॥मू०३५॥ का परिभोग करते हुए तथा वस्त्रादि धोते हुए श्रमण-श्रमणी का चारित्र से पतन हो जाता है। दशकालिक सूत्र के अध्ययन ६ गा. ५१ में कहा है कंसेसु कंसपाएसु, कुंडमोएसु वा पुणो । भुजंतो असणपाणाई, आयारा परिभस्सइ" ॥१॥ गृहस्थ के कटोरी आदि, तथा कांसे के, उपलक्षण से सोने, चांदी, पीतल आदि के और मिट्टी के वरतन में भोजन करता हुआ साधु चारित्र से भ्रष्ट हो जाता है। यहाँ ‘भुंजतो' पद उपलक्षण है । इससे गृहस्थ के पात्र में वस्त्र धोने का और गर्म जल को ठंडा करने का भी निषेध हो जाता है ॥सू०३५॥ કારણ એ છે કે એ પ્રકારનાં પાત્રોમાં અનાદિને પરિભેગ કરનાર તથા વસ્ત્રાદિ દેનાર શ્રમણ-શ્રમણી ચારિત્રથી SR પતન પામે છે. દશવૈકાલિકસૂત્રના અધ્યયન ૬, ગાથા ૫૧ માં કહ્યું છે "कंसेसु कंसपाएसु, कुंडमोएसु वा पुणो । भुजंतो असणपाणाई, आयारा परिभस्सइ” ॥१॥ ગૃહસ્થના વાટકા આદિ, તથા કાંસાનાં, ઉપલક્ષણથી સેના-ચાંદી-પીતળ આદિન અને માટીનાં વાસણોમાં aon ४२ना२ साधु यात्रियी बट जय छे. ही 'भुजतो' ५४ GRक्ष छे. आथी त्याना पात्रमा र ४५i घोपानी भने १२ पान ४२वान पर निषेध | 14 . (सू०३५) ॥११०॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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