________________
नन्दीसूत्रे नत्वनन्ताः। तथा स्थावराः-तिष्ठन्त्येवं-शीलाः स्थावराः-शीतातपाद्यभिभूता अपि स्थानान्तरं गन्तुमसमर्थाः पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिकायलक्षणा अनन्ताः सन्ति । वनस्पतेरानन्त्यात्स्थावराणामानन्त्यं बोध्यम् । उपरि निर्दिष्टा एते सर्वे-शाश्वतकृतनिबद्धनिकाचिताः, तत्र-शाश्वताः-द्रव्यार्थिकनयापेक्षया नित्याः, कृताः पर्यायार्थतया प्रतिसमयमन्यथात्वावाप्त्याकृताः-अनित्या इत्यर्थः, निबद्धाः=सूत्र एव ग्रथिता न तु इतस्ततो विकीर्णाः, निकाचिताः-नियुक्तिहेतूदाहरणादिभिः प्रतिष्ठिताः शाश्वतादीनां चतुणों पदानामितरेतरयोगद्वन्द्वः, जिनप्रज्ञप्ताः तीर्थंकर प्ररूपिता ये त्रस जीव परीत-असंख्यात हैं, अनंत नहीं। तथा-'अणंता थावरा' स्थावर जीव अनंत हैं । स्थावर नामकर्म का जिनके उदय हैं वे एकेन्द्रिय जीव स्थावर जीव कहे गये हैं । वे शीत तथा आतप से पीडित होकर भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिये असमर्थ होते हैं । पृथिवीकाय, अपकाय, तेजस्काय, वायुकाय तथा वनस्पतिकाय, इस प्रकार इनके ये पांच भेद हैं । स्थावर काय जीव अनंत हैं इसका कारण यह है कि वनस्पति कायिक जीव अनंत हैं इसलिये स्थावर जीवोंमें अनंतता प्रकट की गई है। और पृथ्वी, अप, तेजो वायु प्रत्येक में असंख्यात असंख्यात जीव है ये सब जीव-त्रसजीव एवं स्थावर जीव 'शाश्वत' द्रव्याथिकनय की अपेक्षा से नित्य हैं, 'कृत' पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा से अनित्य हैं, 'निबद्ध'-सूत्र में ही ग्रथित होने से ये निबद्ध हैं तथा 'निकाचित'-नियुक्ति, हेतु, उदाहरण आदि के द्वारा ये अच्छी तरह से प्रतिष्ठित हैं इसलिये ये निकाचित हैं। 'जिनप्रज्ञप्ता भावा आख्यायन्ते'
से त्रस १५रीत-मसभ्यात छ, सनत नथी. तथा-" अणंत थावरा स्थाવર જીવ અનંત છે. સ્થાવર નામ કર્મને જેમને ઉદય છે એ એકેન્દ્રિય જીને સ્થાવર જીવ કહેલ છે. તેઓ શીત તથા આતપથી ત્રાસીને એક સ્થાનેથી બીજે સ્થાને જવાને માટે અસમર્થ હોય છે. પૃથિવીકાય, અકાય, તેજસ્કાય, વાયુકાયા તથા વનસ્પતિકાય, આ રીતે તેમના પાંચ ભેદ છે. સ્થાવર કાય જીવ અનંત છે, તેનું કારણ એ છે કે વનસ્પતિકાયિક જીવ અનંત છે તે કારણે સ્થાવર જીવમાં અનંતતા પ્રગટ કરવામાં આવેલ છે. એ બધાં જીવ-ત્રસજીવ અને સ્થાવર જીવ "शाश्वत" द्रव्याथि ४ नयनी अपेक्षा नित्य छ, “कृत” पर्यायार्थि नयनी अपेक्षा अनित्य छ, “निबद्ध' सूत्रमा अथित डापाथी निमद्ध छ तथा “निकाचित" नियुलित; तु, हाड२५ माहि द्वारा ते सारी रीत प्रतिष्ठित छ तथी तमा निथित छे. “जिन प्रज्ञप्ता भावा आख्यायन्ते" से समस्त ।
શ્રી નન્દી સૂત્ર