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नन्दीसूत्रे अक्रूरमतिरपि या रतिलालसा सा न भवति निर्वाणयोग्येत्यत आह-'णो ण उवसंतमोहा' इति, 'नो न उपशान्तमोहा' इति । काचिदुपशान्तमोहाऽपि संभवति, तथादर्शनादिति भावः । ____ उपशान्तमोहाऽपि या खल्वशुद्धाचारा गर्हिता, सा न भवति निर्वाणयोग्येत्यत आह-"णो ण सुद्धाचारा" इति, ‘नो न शुद्धाचारा' इति । काचित् शुद्धाचाराऽपि भवति, अतिचारवर्जनेन शुद्धाचारदर्शनादिति भावः। ___शुद्धाचाराऽपि काचिदशुद्धबोन्दिर्न निर्वाणाधिकारिणीत्यत आह-" णो असु
बोंदी" इति, 'नो अशुद्धशरीरा' इति । या वज्रर्षभनाराचसंहननरहिता सा अशुद्धशरीरा, सा न भवति मोक्षयोग्या सर्वैव तथाविधा न भवतीत्यर्थः । काचित् शुद्धशरीराऽपि भवतीति भावः । प्रतिबंध नहीं है । उस ध्यान के अभाव में भी प्रकृष्ट शुभ ध्यान हो सकता है । "नो न उपशान्तमोहा" कितनीक स्त्रियां अतिक्रूर मतिवाली नहीं भी होती हैं परन्तु उनमें रति की लालसा रहती है अतः ऐसी स्त्रियां निर्वाणयोग्य नहीं मानी गई हैं सो इस बाधाकी निवृत्ति के लिये सूत्रकार कहते हैं कि ये विवक्षित स्त्रियां अक्रूरमतिवाली होकर उपशांत मोहवाली हैं। इनकी रतिलालसारूप मोहपरिणति उपशान्त हो चुकी है। "नो न शुद्धाचारा" कितनीक स्त्रियां ऐसी भी होती हैं जो उपशांतमोहपरिणति विशिष्ट होने पर भी अशुद्ध आचारवाली होती है परन्तु जिन्हें मुक्ति प्राप्त करनी हैं वे शुद्ध आचार विशिष्ट नहीं होती हैं, यह बात नहीं है अपि तु शुद्धाचार विशिष्ट ही होती हैं, क्यों कि ये अपने आचार में दोषों को नहीं लगने देती हैं, तथा लगने पर उनकी शुद्धि करती हैं । "नो अशुद्धशरीरा" शुद्धाचार विशिष्ट होने समामा ५ प्रष्ट शुमध्यान छे. “नो न उपशान्त मोहा"tels સ્ત્રીઓ અક્રમતિવાળી હતી પણ તેઓમાં રતિની લાલસા રહે છે, તેથી એવી સ્ત્રીઓ નિર્વાણને પાત્ર મનાયેલ નથી. તે એ બાધાના નિવારણ માટે સૂત્રકાર કહે છે કે તે વિવક્ષિત સ્ત્રીઓ અક્રમતિવાળી થઈને ઉપશાંત મેહવાળી छ. तभनी २तिस३५ मा परिणति ५id गये छ. “नो न शद्धाचारा" 2ी खी। थेवी ५ डाय छ है शांतमा परिणति યુક્ત હોવા છતાં અશુદ્ધ આચારવાળી હોય છે, પણ જેને મોક્ષ પ્રાપ્ત કરે છે તે શુદ્ધ અચારયુક્ત હોતી નથી એવી કોઈ વાત નથી, પણ શુદ્ધાચાર યુક્ત જ હોય છે, કારણ તેઓ પિતાના આચારમાં દેષ લાગવા દેતી નથી અને मागे तेनी शुद्धि परे छे. “नो अशुद्ध शरीरा"शुद्ध मायारयुत रसी
શ્રી નન્દી સૂત્ર