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________________ ३२ नन्दीसूत्रे व्याप्नोतीत्यक्षो जीवः । 'अशूङ व्याप्तौ ' इत्यस्मादौणादिकः सक्-प्रत्ययः। अक्षं= जीवं प्रति साक्षाद् गतम् , अन्यनिरपेक्षं वर्तते यद् ज्ञानं, तत्प्रत्यक्षम् । 'अत्यादयः क्रान्ताद्यर्थे द्वितीयया' इति वार्तिकेन समासः। अवधि-मनःपर्यव-केवलानि त्रीणि प्रत्यक्षात्मकानि ज्ञानानि, अन्यानपेक्षतया साक्षादर्थबोधकत्वेन तेषां जीवं प्रति साक्षाद्वर्तित्वात् । इह 'च'-शब्दः स्वगताऽनेकभेदसंसूचकः । उत्तर-प्रत्यक्ष-शब्दका अर्थ है जो इन्द्रियादिकोंकी सहायताके विना केवल आत्माकी ही सहायतासे उत्पन्न होता है वह ज्ञान प्रत्यक्ष है। प्रत्यक्षमें प्रति+अक्ष, ऐसे दो शब्द हैं । 'अक्ष' यह शब्द “अशङ्व्याप्तौ" इस व्याप्त्यर्थक 'अशृङ्' धातुसे औणादिक 'सक'-प्रत्यय करने पर बनता है । “अक्षं प्रति वर्तते तत् प्रत्यक्षम् " अर्थात्-जो ज्ञान जीवके प्रति अन्य निरपेक्ष होकर रहता है वह प्रत्यक्ष है, ऐसा इसका फलितार्थ होता है । “अत्यादयः क्रान्ताद्यर्थे द्वितीयया” इस वार्तिकसे यहां द्वितीया विभक्तिके साथ समास हुआ है । अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान तथा केवलज्ञान, ये तीन ज्ञान प्रत्यक्षस्वरूप इस लिये कहे गये हैं कि इनमें इन्द्रियादिक अन्य पदार्थों की सहायता की अपेक्षा नहीं रहती है, तथा इनकी सहायताके विना ही ये स्पष्टरूपसे अपने विषयभूत पदार्थ को ग्रहण करते हैं, इसलिये इन्हें जीवके प्रति साक्षाद्वर्ती कहा गया है। सूत्र में जो "च" शब्द आया है वह प्रत्यक्षगत अनेक भेदोंका बोधक है। ઉત્તર–જે ઈન્દ્રિયની મદદ વિના કેવળ આત્માની મદદથી જ ઉત્પન્ન थाय छे ते ज्ञान प्रत्यक्ष छ. प्रत्यक्षमा प्रति+अक्ष ये शो छ. 'अक्ष' ॥ श६ “ अशुङ् व्याप्तौ ” २व्याप्त्यर्थ “ अशूङ" धातुथी औणादिक सक् प्रत्यय अतां मने छ. “ अक्ष प्रति वर्तते तत् प्रत्यक्षम्, मेट २ ज्ञान જીમાં અન્ય નિરપેક્ષ (બીજાની અપેક્ષારહિત) થઈને રહે છે તે પ્રત્યક્ષ છે, सेवा तन। अर्थ इक्षित थाय छे. “ अत्यादयः क्रान्ताद्यर्थे द्वितीयया " या वातिકથી અહીં બીજી વિભકિત સાથે સમાસ થયેલ છે. અવધિજ્ઞાન, મન:પર્યવજ્ઞાન, તથા કેવળજ્ઞાન એ ત્રણ જ્ઞાન પ્રત્યક્ષસ્વરૂપ એ માટે કહેવાયાં છે કે તેઓમાં ઈન્દ્રિયાદિક બીજા પદાર્થોની સહાયતાની આવશ્યકતા રહેતી નથી, તથા તેમની મદદ વિના જ તે પોતાના વિષયભૂત પદાર્થને સ્પષ્ટરૂપે ગ્રહણ કરે છે, તેથી તેમને वनी त२३ साक्षावती वायां छ. सूत्रमा २'च' श६ माव्यो ते પ્રત્યક્ષગત અનેક ભેદને બેધક છે. શ્રી નન્દી સૂત્ર
SR No.006373
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size49 MB
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