SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 870
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .१५ उत्तराध्ययनसूत्रे समासेन=संक्षेपेण, व्याख्याताः। विस्तरतस्तु एषां त्रयाणां बहुतरा भेदाः सन्तीति भावः। अतस्तु-अतः परम् , त्रिविधान् सान अनुपूर्वशः अनुक्रमेण वक्ष्यामि।।१०७॥ श्री सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामिनं प्रत्याहमूलम्-तेऊ वाऊ ये बोधवा, उंराला य तसा तहा। इच्चेएँ तसो तिविहीं, तेसिं भेएँ सुंणेह में" ॥१०॥ छाया-तेजांसि वायवश्व बोद्धव्याः, उदाराश्च त्रसास्तथो । इत्येते त्रसास्त्रिविधाः, तेषां भेदान् शृणुत मे ॥ १०८॥ टीका-'तेऊ वाऊ य' इत्यादि। हे जम्बूः ! तेजांसि अग्नयः, वायवश्व, इमे उभये एकेन्द्रिया, तथा-उदाराः -एकेन्द्रियापेक्षया प्रायः स्थूलाः, द्वीन्द्रियादय इत्यर्थः । त्रसा: त्रस्यन्ति-चलन्ति त्रिविधाः) तीन प्रकार के (थावरा-स्थावराः) स्थावर जीवोंका (समासेण वियाहिया-समासेन व्याख्याताः) यह संक्षेप से ही कथन किया है। कारण कि विस्तार से यदि इसका कथन किया जाता तो इनके अनेक भेद प्रभेदोंका भी यहां कथन किया गया होता। परन्तु ऐसा नहीं किया है अतः इससे यही समझना चाहिये कि यह कथन यहां इनका संक्षेप को लेकर ही किया गया है। (इत्तोउ-अतस्तु ) अब इसके बाद (तिविहे तसे अणुपुव्वसेा-विविधान् सान्-अनुपूर्वशः) विविध त्रस जीवोंका में क्रमशः कथन करता हूं ॥ १०७॥ 'तेउ' इत्यादि। __ अन्वयार्थ-इस गाथाद्वारा श्री सुधर्मास्वामी जंबूस्वामीसे कहते हैं कि हे जंबू!-(तेउ वाउ य-तेजांसि वायवश्च) तेजस्काय और वायुकाय ये दोनों एकेद्रिय जीव ( उराला-उदाराः ) एकेन्द्रिय जीवोंकी अपेक्षा स्थावराः स्था१२ वार्नु समासेण वियाहिया-समासेन व्याख्याता सपथी पनि કરેલ છે કારણ કે, વિસ્તારથી જે એનું વર્ણન કરવામાં આવે તે એના અનેક ભેદ પ્રભેદનું પણ વર્ણન કરવામાં આવ્યું હતું. પરંતુ એવું કરવામાં આવેલ નથી. આથી એ સમજવું જોઈએ કે, આ કથન એના સંક્ષેપને લઈને १ ४२ छे इत्ताउ-अतस्तु वे माना पछी तिविहे तसे अणुपुवसो-त्रिविधान सान् अनुपूर्वशः विविध त्रस वोनु हुं मश: पन ४३ छ ॥ १०७ ॥ ___“ ते उ"छत्याहि ।। અન્વયાર્થ–આ ગાથા દ્વારા શ્રી સુધર્માસ્વામી જખ્ખસ્વામીને કહે છે है, भ्यू! तेऊ वाऊय-तेजांसि वायवश्च ते२४२४ाय अने वायुय से मन उत्तराध्ययनसूत्र :४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy