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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० ३६ स्पर्शभङ्गनिरूपणम् ७३१ टीका-'फासए सीयए' इत्यादि-- व्याख्या पूर्ववत् । अत्राऽपि प्राग्वत्सप्तदश (१७) भङ्गा भवन्तीति भावः ॥ ३९ ॥ अथ उष्णस्पर्श भङ्गानाहमूलम्-फासओ उहए 'जे उ, भंइए से उ वण्णओ। गंधओ रंसओ चेवं, भैइए संठाणओ वि२ यं ॥४०॥ छाया--स्पर्शतः उष्णो यस्तु, भाज्यः स तु वर्णतः। गन्धतोः रसतश्चैव, भाज्यः संस्थानतोऽपि च ॥ ४० ॥ टीका--'फासओ उण्हए' इत्यादिव्याख्या प्राग्वत् । उष्णस्यापि प्राग्वत्सप्तदश १७ भङ्गा भवन्ति ॥४०॥ अब शीत स्पर्शके भंगोंको कहते हैं-'फासओ सीयए' इत्यादि। अन्वयार्थ (जे-यः) जो स्कंध आदि (फासए-स्पर्शतः) स्पर्श परिणामकी अपेक्षा परिणत होनेके कारण (सीयए भवइ-शीतकः भवति) शीत स्पर्शवाला होता है (से-सः) वह (वण्णओ भइए-वर्णतः भाज्यः) वर्णकी अपेक्षा भाज्य होता है । इसी तरह वह (गंधओ रसओ वि य संठाणओ भइए-गंधतः रसतः अपि च संस्थानतः भाज्यः) गंधकी, रसकी, और संस्थानकी अपेक्षा भी भाज्य होता है। यहां पर भी पहिलेकी तरह सत्रह भंग जानना चाहिये ॥३९॥ अब उष्ण स्पर्शके भङ्गोंको कहते हैं—'फासओ उण्हए' इत्यादि। अन्वयार्थ (जे-यः) जो स्कन्ध आदि (फासओ-स्पर्शतः) स्पर्श परिणामसे परिणत होनेके कारण (उण्हए-उष्णः) जब उष्ण स्पर्शवाला वे 2ीत २५शना गाने ४ छ-'फासओ सीयए " त्यात. मन्वयार्थ-जे-यः २ २४३ मा फासए-स्पर्शतः २५ परिणामनी अपेक्षा परिणत होवाना औरणे सीयए भवइ-शीतकः भवति शीत १५शवाय डाय छे. से-सः ते वण्णओ भइए-वर्णतः भाज्यः पनी अपेक्षा मlarय थाय छे भार प्रमाणे ते गंधओ रसओ विय संठाणओ भइए -गंधतः रसतः अपि च संस्थानतः भाज्यः धनी, २सनी मने संस्थाननी अपेक्षा ५ मlorय थाय छे. मडीया પણ પ્રથમની માફક સત્તર ભ ગ જાણવા જોઈએ. જે ૩૯ वे ] २५शन मनाने ४ छ-" फासओ उहए " त्याल. अन्याय-जे-यः रे २४५ AI फासओ--स्पर्शतः २५ परिणामयी परित डीवाना ॥२] न्यारे उण्हए-उष्णः 6 स्पशवाय भानवाम भाव उत्तराध्ययन सूत्र :४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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