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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० ३६ रसभङ्गनिरूपणम् टीका- ' रसओ कसाए जे उ' इत्यादि व्याख्या पूर्ववत् । कषायरसस्याऽपि पूर्ववद् गणनया विंशतिर्भङ्गाः ॥ ३२ ॥ अम्लस्य भङ्गानाह- १२ मूलम् - रंसओ अंबिले जे' उं, भइ से उं वॅण्णओ । गंधेओ फासओ चैवं, भइए संठीणओ वि" # ॥३३॥ छाया -- रसतः अम्लो यस्तु, भाज्यः स तु वर्णतः । गन्धतः स्पर्शतश्चैव, भाज्यः संस्थानतोऽपि च ॥ ३३ ॥ ७२५ -- अब कषायरस के भंगों को सूत्रकार कहते है'रसओ कसाए' इत्यादि । अन्वयार्थ - - ( जे - यः ) जो स्कन्ध आदि (रसओ - रसतः ) रसकी अपेक्षा (कसाए - कषायः) कषाय रसवाला होता है ( से उ- स तु ) वह (वण्णओ भइए - वर्णतः भाज्यः) वर्णकी अपेक्षा भाज्य होता है । इसी तरह (गंधओ फासओ वि य संठाणओ भइए- गन्धतः स्पर्शतः अपि च संस्थानतः भाज्यः) वह गन्ध स्पर्श एवं संस्थानकी अपेक्षा भी भाज्य जानना चाहिये । अर्थात् जो स्कन्धर सकी अपेक्षासे कषायरसवाला होता है वह नियमित वर्णवाला नियमित गंधवाला तथा नियमित स्पर्श एवं संस्थानवाला होगा ऐसा नही है । वह इनसे भाज्य ही होगा । अतः पांच वर्णोंसे कोई एक वर्ण, दो गंधमें से कोई एक गंध, आठ स्पर्शमें से कोई एक स्पर्शवाला होगा। इसी तरह संस्थान में से कोई एक संस्थानवाला होगा। इस प्रकार कषाय रसके ये बीस भंग होते हैं ||३२|| हवे षाय रसना लौंगोने सूत्रार बतावे छे - " रसओ कसाए" इत्यादि. मन्वयार्थ – जे-यः ने संध याहि रसओ - रसतः रसनी अपेक्षाओ कसाए- कषायः षाय रसवाजा होय छे से उ स तु ते वण्णओ भइए - - वर्णतः भाज्यः वर्षानी अपेक्षाये मान्य होय छे. मे प्रभा गंधओ फासओ वि य संठाणओ भइए-गंधतः स्पर्शतः अपि च संस्थानतश्च भाज्यः गांध, स्पर्श मने संस्थाननो अपेक्षाओ પણ ભાજ્ય જાણવા જોઈએ. અર્થાત્ જે સ્ક ંધની અપેક્ષા કષાય રસવાળા હોય છે. તે નિયમિત વર્ણવાળા, નિયમિત ગંધવાળા, તથા નિયમિત સ્પર્શે અને સસ્થાનવાળા હોય જ એવું નથી એ એનાથી ભાન્ય જ હાય છે, આથી પાંચ વર્ષમાંથી કાઈ એક વણુ, એ ગધમાંથી કોઈ એક ગંધ, આઠ સ્પમાંથી કોઈ એક સ્પ વાળા હેાવાના. આજ રીતે સંસ્થાનમાંથી કાઈ એક સ ંસ્થાન વાળા હૈાવાના આ પ્રમાણે આ કષાય રસના પણ વીસ ભંગ હાય છે. ૩૨ા उत्तराध्ययन सूत्र : ४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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