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________________ ६५४ उत्तराध्ययनसूत्रे वक्ष्यमाणषष्टितमगाथोक्तवचनाद्देवभसंबन्धिन्येवेति प्रदर्शनार्थमेवमुक्तमिति न विरोध इति भावनियम् ॥ ५४ ॥ शुल्कलेश्यायाः स्थितिमाह-- मूलम्-जा पम्होए ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमभहिया। जहन्नेणं सुकाए, तेत्तीस मुहुत्तमब्भहिया ॥ ५५ ॥ छाया-या पद्मायाः स्थितिः खलु, उत्कृष्टा सा तु समयाभ्यधिका । जघन्येन शुल्कायाः, त्रयस्त्रिंशत् मुहूर्ताभ्यधिका ॥ ५५ ॥ टीका-'जो पम्हाए ठिई खलु' इत्यादि-- या पायाः पालेश्यायाः, खलु उत्कृष्टा स्थितिः, सा तु=सैव समयाभ्यधिका शुक्लाया जघन्येन स्थिति भवति । त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमाणि, मुहूर्ताभ्यधिकानि=अन्तर्मुहूर्ताभ्यधिकानि उत्कृष्टो स्थिति भवतीत्यर्थः । की लेश्या भी "अंतो मुहुत्तमिगए " इसी अध्ययन की (६०) साठवीं गाथा के अनुसार देवभवसंबंधि ही है इस बात को दिखलाने के लिये ऐसा कहा गया है। अतःइसमें कोई विरोध नहीं है। इस विषय को आगे चलकर साठवीं गाथा में स्वयं सूत्रकार स्पष्ट करेंगे अतःयहां नहीं किया है ॥ ५४॥ शुक्ललेश्या की स्थिति दिखलाने के लिये सत्रकार कहते है-'जा पम्हाए' इत्यादि। ___ अन्वयार्थ-( जा पम्हाए उक्कोसा ठिई-या पद्मायाः उत्कृष्टा स्थितिः) जो पद्मलेश्या की उत्कृष्टस्थिति है ( समयमभहिया सा-समयाभ्यधिका सा) एक समय अधिक वही स्थिति (सुक्काए-शुक्लायाः) शुल्कलेश्या की ( जहन्नेणं-जघन्येन ) जघन्यरूप से है। ( तेत्तीस मुह. ५५ " अंतो मुहुत्तंमिगए” मा अध्ययननी १० भी था अनुसार દેવભવ સંબંધી જ છે. આ વાતને બતાવવા માટે જ આ રીતે કહેવામાં આવેલ છે. આથી તેમાં કેઈ વિરોધ રહેતું નથી. આ વાતને આગળ ચાલીને ૬૦મી ગાથામાં સ્વયં સૂત્રકાર સ્પષ્ટ કરશે. તેથી અહીં કહેલ નથી. ૫૪ वेश्यानी स्थिति मतावा भाटे सूत्र४१२४ छ-"जा पम्हाए" त्या ! भ-क्या-जा पम्हाए उक्कोसा ठिई-या पद्मायाः उत्कृष्टा स्थितिः ५ सेश्यानी २ ४८ स्थिति छ समयमभहिया सा-समयाभ्यधिका सा मे समय मधि यो स्थिति सुक्काए-शुक्कायाः शुख सेश्यानी जहन्नेणं-जघन्येन धन्य ३५थी छ तेत्तीसमुहत्तमष्भहिया-त्रयस्त्रिंशत् मुहूर्ताभ्याधिका तथा : मन्तडत मधि ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૪
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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