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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० ३४ स्थितिद्वारनिरूपणम् ૬૪૭ धिका नीलाया लेश्याया जघन्येन स्थितिर्भवति । पल्योपमासंख्येयं च भागम् उत्कृष्टा स्थितिर्भवति । नवरं - मध्यमायुष्काणां देवानां तावत्स्थितिकत्वाद् चहत्तरोऽयमसंख्येय भागो गृह्यते ॥ ४९ ॥ कापोत्याः स्थितिमाह -- मूलम् - जा नीलाए ठिई खलु, उक्कोसौ सा उ समयमब्भहिया । जंहन्त्रेणं काऊंए, पलियमेसंखं चे उक्कोसी ॥ ५० ॥ छाया - - या नीलायाः स्थितिः खलु उत्कृष्टा सा तु समयाऽभ्यधिका । जघन्येन कापोत्याः, पल्योपमासख्येयं च उत्कृष्टा ॥ ५० ॥ टीका--' जा नीलाए ' इत्यादि -- या नीलायाः = नीललेश्याया उत्कृष्टा स्थितिरुक्ता सा तु सैव समयाभ्यधिका कापोत्यालेश्याया जघन्येन स्थितिर्भवति । पल्योपमासंख्येयं च भागं तस्या ( उक्कोसा ठिई - उत्कृष्टा स्थितिः ) उत्कृष्ट स्थिति है ( सा-सा ) वही ( समयमभिहिया - समयाभ्यधिका) एक समय अधिक होकर (नीलाएनीलायाः ) नीललेश्या की ( जहन्नेणं - जघन्येन) जघन्य स्थिति है । तथा नीलयाकी (पलियमसंखं उक्कोसा - पल्योपमासंख्येय उत्कृष्टा ) एक पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है । मध्यम आयुवाले देवों की इतनी स्थिति होनेसे यहाँ पल्यका असंख्यातवाँ भाग (अधिक) ग्रहण किया गया है ॥ ४९ ॥ कापोतीलेश्या की स्थिति इस प्रकार है- 'जा नीलाए' इत्यादि । अन्वयार्थ - ( जा-या ) जो (नीलाए - नीलायाः ) नीललेश्या की ( उक्कोसा - उत्कृष्टा ) उत्कृष्ट स्थिति कही गई है ( साउ- सातु ) वही (काउए जहणेणं - कापोत्या : जघन्येन) कापोतीलेश्याकी जघन्य स्थितिः उत्ष्ट स्थिति छे सा सा तेन समयमभिहिया - समयाभ्यधिका मे समय वधु थधने नीलाए - नीलायाः नीसयोश्यानी जहन्नेणं-जघन्येन धन्य स्थिति छे. तथा नीलयोश्यानी पलियमसंखं - उक्कोसा - पल्योपमासंख्येय उत्कृष्टा એક પલ્યના અસખ્યાતમા ભાગ પ્રમાણે ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ છે. મધ્યમ આયુવાળા દેવાની એટલી સ્થિતિ હાવાથી અહીં પલ્યના અસંખ્યાતમા ભાગ બ્રહત્તર (અધિક) ગ્રહણ કરવામાં આવેલ છે, કા अपोती बेश्यानी स्थिति या अहारनी छे" जा नीलाए " इत्याहि ! अन्वयार्थ -जा-या ने नीलाए - नीलायाः नीवोश्यानी उक्कोसा- उत्कृष्टा त्ष्ट स्थिति यताववामां आवे छे साउ- सातु ४ काउए जहण्णेणं - कापोत्या जघन्येन उत्तराध्ययन सूत्र : ४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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