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प्रियदशिनी टीका अ० ३४ स्थितिद्वारनिरूपणम्
६४१ उत्कृष्टा स्थिति भवति । कृष्णाया जघन्या धूमप्रभायाम् उत्कृष्टा तु तमस्तमायाम् ॥ ४३ ॥ मूलम्-एसा नेरईयाणं लेसाण ठिई उ वणिया होई।
तेण परं वुच्छमि, तिरिय मणुस्साण देवाणं ॥४४॥ छाया-एषा नारकाणां स्थितिस्तु वर्णिता भवति ।
ततः परं वक्ष्यामि, तिरश्चां मनुष्याणां देवानाम् ॥ ४४ ॥
टीका--' एसा' इत्यादि--गाथेय सुगमा ॥ ४४ ॥ (जहनिया-जघन्यिका) जघन्यस्थिति (दस उदही पलिओपम असंखभाग -दशउद्धीन् पल्योपमासंख्येयभागम् ) दशसागर और पल्योपम के असंख्यातवें भाग है। तथा (उक्कोसा-उत्कृष्टा) उत्कृष्टस्थिति (तेत्तीस सागराइं-त्रयस्त्रिंशत् सागरान् ) तेतीस सागर की है। कृष्णलेश्या धूमप्रभासे प्रारंभ होकर तमस्तमा नाम के सातवें नरक तक होती है अतःइसकी जघन्यस्थिति धूम प्रभा में तथा उत्कृष्टस्थिति तमस्तमामें जानना चाहिये ॥ ४३॥
नारककी लेश्या की स्थिति का उपसंहार करते हुए श्री सुधर्मा स्वामी तिर्यश्च मनुष्य एवं देवों की लेश्याओं की स्थिति को कहते हैं'एसा' इत्यादि। ___ अन्वयर्थ-(एसा नेरइयाणं लेसाण ठिई वणिया होइ-एषा नारकाणां लेश्यानां स्थितिःवर्णिता भवति) यह नारकों की लेश्या की स्थिती मैंने कही है। (तेणपरं-ततःपरम् ) अब इसके बाद (तिरिय मणुस्साण
धन्य स्थिति दसउदही पलिओवम असंखभाग-दश उद्धीन् पल्योपमासंख्येयभागं इस सागर मने पहयोपमना मस यातभा मा प्रभार छ. तथा उक्कोसा-उत्कृष्टा Gट स्थिति तेत्तीस सागराइं-त्रयस्त्रिंशत् सागरान् तेत्रीश सानी छे. वेश्या ધૂમ પ્રભાથી શરૂ થઈને તમસ્તમા નામના સાતમા નરક સુધી હોય છે. આથી એની જઘન્ય સ્થિતિ ધૂમ પ્રભામાં તથા ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ સમસ્તમામાં જાણવી જોઈએ. ૪૩
નારકીના જીવોની લેશ્યાની સ્થિતિને ઉપસંહાર કરીને શ્રી સુધર્માસ્વામી तिय"य, मनुष्य मन हेवोनी वेश्या-यानी स्थितिने ४ छ- “एसा" त्या!
मन्वयार्थ -एसा नेरइयाणं लेसाणठिई वण्णिया होई-एषा नारकाणां लेश्यानां स्थितिः वर्णिता भवति ॥ नासीन वानी अश्यानी स्थिति में हीछे तेणपरं
उत्तराध्ययन सूत्र :४