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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० ३४ नीललेश्यायाः लक्षणनिरूपणम् ६२३ अभावः, अविद्या-कुशास्त्ररूपा, माया प्रसिद्धा, अहीकता-असदाचारकरणे लज्जाया अभावः, गृद्धिः-विषयेष्वासक्तिः, प्रद्वेषश्च, इह सर्वत्राभेदोपचारात् तद्वान् जीव एव गृह्यते । अत एव शठःचञ्चकः, प्रमत्तः-प्रकर्षण जात्यादिमदयुक्तः, रसलोलुपः% शातगवेषकः, 'अमरिस' इति 'अविज्ज' इतिच लुप्तप्रथमान्तम् , अस्या अग्रिम गाथया सह सम्बन्धः ॥ २३ ॥ 'साय गवेसए य' इत्यादिसातगवेषकः-विषयसुखार्थी, आरम्भात् माणिवधात् , अविरतः-अनिवृत्तः, अन्यत् सर्व स्पष्टम् ॥ २४ ॥ (अतवो-अतपः) तपश्चर्या करनेसे विमुख रहना (अविज-अविद्या कुशास्त्रों में तत्पर रहना (माया-माया) छल कपट करना (अहिरिया अहीकता ) लज्जारहित होना (गेहि-गृद्धिः) विषयों में आसक्ति का होना (पओसे-प्रद्वेषश्च ) द्वेष रखना (सढे-शठः) दूसरों की प्रतारना ठगाई-करना (पमत्ते-प्रमत्तः) जात्यादिक मदों से अत्यंत युक्त रहना (रसलोलुए-रसलोलुपः ) रसना इन्द्रिय के विषय में लोलुप बनना ॥२३॥ तथा-'सायगवेसए' इत्यादि। अन्वयार्थ-(सायगवेसए-सातगवेषकः) साता का गवेषी होना (आरम्भाओ अविरओ-आरम्भात् अनिवृत्तः) प्राणि वध के स्थानभूत आरंभ से विरक्त नहीं होना (खुद्दो-क्षुद्रः) स्वप्न में भी दूसरों के हित की अभिलाषा वाला नहीं होना (साहस्सिओ-साहसिकः) विनासोचे समझे काम करने लगना, इत्यादि लक्षणों से युक्त प्राणी नीललेश्या के परिणाम वाला जानना चाहिये ॥२४॥ अमर्षः शेष ४२वी, तथा सहा शेषमय परिणाम रामधु', अतवो-अतपः तपस्या ४२वाथी विभुम २९९, अविज्ज-अविद्यो शालोमा त५२ २२, माया-माया छ१४५८ ४२९, अहरिया-अहीकता Coron २डित थ, गेहि-गृद्धिः विषयमा मासहित रामवी, पओसे-प्रद्वेषश्च द्वेष रावो, सढे-शठः मीनयानी छ १२वी, पमत्ते-प्रमत्तः त्याहि भहाथी अत्यंत युश्त रहे, रसलोलुए-रसलोलुपः ઈન્દ્રિયના વિષયમાં લોલુપતા રાખવી. પરવા तथा-" सायगवेसए" त्याह! मन्वयार्थ -सायगवेसए-सातगवेषकः साता द्वेष ४२३, आरभ्भाओ अविरओ-आरम्भात् अनिवृत्तः प्राणी पधना स्थानभूत सामथी वि२४त न थ, खुद्दो-क्षुद्रः स्वपनामा ५९ मीना डितनी मनिसान रामवी साहस्सिओसाहसिकः ११२ वियाये भने ४२१॥ anी , त्या क्षyथी युक्त પ્રાણી નીલલેશ્યાના પરિણામવાળે જાણવું જોઈએ. ૨૪ उत्तराध्ययन सूत्र:४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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