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________________ ११५ प्रियदर्शिनी टीका. अ० २७ शठतास्वरूपवर्णनम् अभीक्ष्णम्-वारं वारं विध्यतिाजनकस्य आरया व्यथयति । ततो गलिकृषभादिः किं करोति ? इत्याह-' एगो भंजइ' इत्यादि । एकः शमिलां-युगरन्ध्रकीलिका भनक्ति त्रोटयति । तथा-एको वृषभः उत्पथप्रस्थितः उन्मार्गगामी भवति ॥४॥ किं चमूलम् एगो पडइ पासेणं, निवेसँइ निवज्जई। उक्कुइँइ उप्फिंडइ सँढे बालगविं वएं ॥५॥ छाया-एकः पतति पार्श्वन, निविशति निपद्यते । उत्कूदते उत्स्फिटति, शठो बालगवीं व्रजति ॥५॥ टीका-'एगो' इत्यादि। अको गलिबलीवईः पार्श्वन वामेन दक्षिणेन वा पार्श्वन पतति, अन्यः कश्चिद् फिर अतिरुष्ट हुवा खलंक बैलों को चलाने वाला सारथि क्या करता है ? सो कहते हैं--' एगं'-इत्यादि ! ___ अन्वयार्थ--इस तरह रुष्ट होकर वह सारथि आवेश में आकर (एगे पुच्छम्मि डसइ-एकं पुच्छे दशति) एक बैल को पूछ में काट खाता है तो (एगे-एकम् ) एक-दूसरे बैलों को (अभिक्खणं विंधइअभीक्ष्णम विध्यति) बार बार आर से व्यथित करता है। इस प्रकार होने पर (एगो समिलं भंजइ-एकः शमिलां भनक्ति) एक बैल शमिलाजए की खीली को तोड़कर भाग जाता है और (एगो उप्पहपडिओएकः उत्पथे प्रस्थितः) एक दूसरा उन्मार्ग-उपट मार्ग में जाता है॥४॥ फिर भी-' एगो' इत्यादि । अन्वयार्थ--(एगा-एकः) कोई एक दुष्ट बैल (पासेणं पडइपार्श्वन पतति ) वाम पार्श्व से दक्षिण पाच से जमीन पर गिर पडता है। આવા ગળિયા બળદેને કારણે ખીજાયેલા સારથી શું કરે છે? તે કહે છે – " एगं" छत्या! मन्वयार्थ -एगं पुच्छम्मि डसइ-एक पुच्छे दशति से मना पूछाने म मरेछ मन एगे-एकम् मीon गहन अभिक्खणं विधइ-अभिषणम् विध्यति मारथी वारपार व्यथित ४२ छे. 20 मारे थवाथा एगो समिलं भंजइ-एकः शमिलं भनति मे म घांसराने ताडन मानय छ भने एगो उप्पहपट्रिओएक उत्पथे प्रस्थितः मीन माल भागे मासी लय छे. ॥४॥ ५ ५-“एगो"-त्याह। भ-क्याथ - एगो-एकः । ४ दुष्ट मह या पासेणं पडइ-पश्चैन उत्तराध्ययन सूत्र :४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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