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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ. २३ श्रीपार्श्वनाथचरितनिरूपणम् पञ्चमहाव्रतधर्म, प्रतिपद्यते भावतः। पूर्वस्य पश्चिमे, मार्गे तत्र शुभान हे ॥८६॥ टीका-'एवं' इत्यादि ।। एवम् अमुना प्रकारेण तु-निश्चयेन संशये छिन्ने सति घोरपराक्रमः केशी मुनिः महायशसं दिगन्तव्याप्तकीर्ति गौतमं गणधरं शिरसा अभिवन्ध पूर्वस्य आदितीर्थकरस्य अभिमते पश्चिमे अन्तिमतीर्थकरसम्बन्धिनि शुभावहे कल्याणमापके मार्गे भावतः पूर्व चातुर्यामो धर्मः प्रतिपत्तव्य इतिभाव असीत. अधुना पश्चयामधर्मः प्रतिपत्तव्य इति भावोऽभूदिति पश्चयामधर्मप्रतिपत्त्यभिप्रायात् तत्र-तिन्दुकोद्याने पञ्चमहाव्रतधर्म प्रतिपद्यते स्वीकरोति स्म । द्वितीयः 'तु' शब्दः पूरणार्थः ।।८६।।८७॥ - इसके बाद केशीश्रमण ने जो किया सी कहते हैं एवं तु' इत्यादि 'पंचमहत्वयधम्म इत्यादि। ___ अन्वयार्थ-(एवं तु संसए छिन्ने-एवं तु संशये छिन्ने) इस प्रकार के कथन से जब केशीश्रमण का संशय नष्ट हो गया तब (घोरपरक्कमे केसी-घोरपराक्रमः केशी) घोर पराक्रस शाली उन केशीकुमार ने (महायससं गोयमं सिरसा अभिवंदित्ता-महायशसंम् गौतमं शिरसा अभिवन्द्य) महायशस्वी गौतम गणधर को मस्तक झुकाकर नमस्कार किया और (पुरिमस्स पच्छिमम्मि मग्गे तत्थ सुहावहे-पूर्वस्य पश्चिमे शु भावहे तत्र मार्गे) आदि तीर्थकर से अभिमत अंतिम तीर्थंकर के कल्याण प्रापक मार्ग में (भावओ पंचमहब्बयधम्म पडिवजइ-भावतः पञ्चमहाव्रतधर्म प्रतिपद्यते) भाव से पंचमहाव्रतरूप धर्म को अंगीकार किया। अर्थात केशीश्रमण कुमार गौतमगणधर के कथन को सुनकर यह जान गये कि साना पछी उशी श्रभरे ज्यु" तेने ४ छ-"एवंतु" प्रत्याहि ! "पंचम हन्वयधम्म" त्या ! अन्याय-एवं तु संशये छिन्ने-एवं तु संशये छिन्ने मा प्रारना वायी वारे अशी श्रमान सशय नाश पाभी गया त्या घोरपरक्कमे केसो -घोरपराक्रमः केशी धर परामशाजी से शी भारे महायससंगोयमंसिरसा अभिवंदित्ता-महायशसं गौतमं शिरसा अभिवन्ध भडायशस्वी गौतम गवरने भरत सवीने नमः४.२ ४ा मने मा पुरिमस्स पच्छिमम्मि सुहावहे तत्थ मग्गे-पूर्वस्य पश्चिमे शुभावहे तत्र मार्ग ती ४२ना मालमत मतिम तीथ ४२ना ४८५१९ प्रा५४ भागमा साथी भावओ पंचमहव्ययधम्म पडिवजइ-भावतः पञ्चमहाव्रतधर्म प्रतिपद्यते पाय मानत३५ घने गी॥२ यो. અર્થાત્ શ્રી શ્રમણ કુમાર ગૌતમ ગણધરના કથાનકને સાંભળીને એ જાણી ગયા उत्तराध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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