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प्रियदर्शिनी टीका अ. २३ श्रीपार्श्वनाथचरितनिरूपणम्
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परतीरस्य गामिनी न भवति । सच्छिद्रत्वेनाभ्यन्तरे जलागमनाद् मध्य एच सा बडतीति भावः। या नौः निरास्त्राविणी-निच्छिद्रत या जलागमरहिता भवति, सा तु पारस्य गामिनी भवति ।।७१।।
केशी पृच्छति - मूलम्-नावा य इई का वुत्ता, केसी गोयममबवी।
तओ के सिं बुवतं तु,गोयमो इणमब्बवी॥७२॥ छाया--नोश्चेति का उक्ता ?, केशी गौतममब्रवीत् ।
ततः केशिनं ब्रुवन्तं तु, गोतम इदमब्रवीत् । ७२।। टीका--'नावा य' इत्यादि । व्याख्या पूर्ववत् ॥७२।। जो नौका सच्छिद्र हवा करती है वह जल भरआने के कारण (सा पारस्स गामिणी न-सा पारस्य गामिनीन) पर तीर पर नहीं पहुँच सकती है। किन्तु बीच में ही डूब जाती है। परन्तु (जा नावा निस्साविणीया नौः निस्राविणी) जो नौका निश्छिद्र होती है उसमें जल नहीं भर सकता है, अतः वह बीच में नहीं डूबती है और (सा उ पारस्स गामिणी -सातु पारस्य गामिनी) वह निर्विघ्नरूप से अपर तट पर पहुँच जाती है। इस गाथा से गौतम ने केशी को ऐसा समझाया है कि हम जिस नौका पर आरूढ हो रहे है वह सच्छिद्र नौका के समान नहीं है किन्तु निश्छिद्र नौका के समान है । अतः वह डगमगा नहीं सकती है ॥७१॥
ऐसा सुनकर के शीश्रमण ने पूछा--'नावा य' इत्यादि ।
जिस नौका पर आप चढे हुए हैं वह नौका कौनसी है तब गौतम ने इस प्रकार कहा-॥७२॥ २ नौ छिद्रवाणी हाय छ, तमां पाणी भराई पाथी सा पारस्स गामिणी न -सा पारस्य गामिनी न सिनारे सहिसलामत रीते पांयी शती नथी मने क्या
मी नय छे. परंतु जा नावा निस्साविणी-या नौः निस्राविणी २ नोमा छिद्र નથી હોતું તેમાં થોડું પણ પાણી ભરાઈ શકતું નથી, જેથી તે વચમાં ડૂબતી નથી भने साउ पारस्स गामिणी-सा तु पारस्य गामिनी ते निवि ने सामे हे सही. સલામત પહોંચી જાય છે. આ ગાથાથી ગૌતમસ્વામીએ કેશા શ્રમણને એવું સમજાવ્યું કે, હું જે નૌકા ઉપર ચડેલ છું એ નૌકા છિદ્રવાળી નથી પરંતુ છિદ્ર વગરની નૌકા છે. न्मायीते उमगती नथी. ॥७॥ ___ा सामजान शी श्रमाणे ५ यु-"नावा य" त्या!ि
જે નૌકા ઉપર આપબેઠેલા છો એ નૌકા કઈ છે? ત્યારે ગતમસ્વામીએ આ પ્રકારે કહ્યું. ૭૨
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उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3