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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे णामा वा साधव एवम् अनेन प्रकारेणैव कुर्वन्ति । किं कुर्वन्ति ? इत्याह'विनियटृति' इत्यादिना-'ते संबुद्धादिविशेषणविशिष्टाः साधवः कथंचिद् विस्रो तसिकोत्पत्तावपि (अस्थिरावस्था प्राप्तावपि) विशेषेण तन्निरोधं कृत्वा भोगेभ्यः= मनोज्ञशब्दादिरूपेभ्यो विनिवर्तन्ते विनिवृत्ता भवन्ति । यथा स पुरुषोत्तमो रयनेमि गेभ्या विनिहत्तः। संबुद्धादिविशेषणविशिष्टा एवं साधन एकदा भग्नपरिणामा अपि पुनः संयमं प्रतिपक्षमाः, नत्वनेवंविधाः इति संबुद्धादि विशेषणपदैः सूचितम् । 'भोगेसु' इत्यत्र पञ्चम्यर्थे सप्तमी, आपत्वात् । इति ब्रवीमि' इत्यस्यार्थः पूर्ववद् बोध्यः ॥५०॥ पूर्वावशिष्टं भगवतोऽरिष्टनेमेश्चरितमुच्यते भगवानरिष्टनेमिरवनीतले विहरन सहस्रांशुरिव कमलोपमान् भव्यजनान् चारित्रपरिणामों के आराधक साधुजन (एवं-एवम्) इस प्रकार से (करंति-कुर्वन्ति) करते हैं । (जहा-यथा) जैसे (सो पुरिसत्तमो-स पुरुषोत्तमः) उन पुरुषोत्तम रथनेमिने किया है अर्थात् जिस प्रकार रथनेमि भोगों से विरक्त हुए उसी प्रकार संबुद्ध आदि विशेषणों से विशिष्ट साधुजन भी किसी भी तरह भोगों की तरफ चलितचित्त होने पर भी (भोगेसु विनियटंति-भोगेभ्यः विनिवर्तन्ते) उन भोगों से-मनोज्ञ शब्दादिक विषयों से विनिवृत्त होते हैं। इन संबुद्ध आदि विशेषणों से मूत्रकारने यह सूचित किया है कि जो संबुद्धविशेषण विशिष्ट साधुजन होते हैं वे ही अपने भग्नपरिणामों को पुनः संयम में स्थिर कर सकते हैं। जो ऐसे नही है वे नहीं। “ति बेमि-इति ब्रवीमि" इन पदों को अर्थ पहिले कर दिया गया है ॥५०॥ पविचक्षणाः सामना मभने Megना२ तथा या(रत्र पाराभाना मारा५४ साधुसन एवं-एवम या प्रारथी करंति-कुर्वन्ति ४२ छ, जहा-यथा म सो पुरि सोत्तमो-स पुरुषोत्तमो मे ५३षोत्तम २थनाभन्ये ४२० छ. मोत- ४ारे २५ નેમિ ભેગોથી વિરક્ત બન્યા એજ પ્રકારે સંબદ્ધ આદિ વિશેષણોથી વિશિષ્ટ સાધુજન ५५ १४ ५२थी सोगानी त२३ ३योग छ। ५६५ भोगेसु विनियतिभोगेभ्यः विनिवर्तन्ते ते सांगायी, मनोज्ञ शह विषयोथी अमिता २ छः मा સંબુદ્ધ આદિ વિશેષણોથી સૂત્રકારે એવું સૂચિત કરેલ છે કે, જે સંબુદ્ધ આદિ વિશેષણ વિશિષ્ટ સાધુજન હોય છે તે જ પોતાના ભગ્ન પરિણામોને ફરીથી સંયમ भमा स्थिर ४२ श छ. २ मेवा नथी त ते ४ यता नथी. "त्ति बेमि इति ब्रवीमि" भा पहना मथ ४३ हेवायेद छ, ॥५॥ उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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