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________________ ६३२ उत्तराध्ययन सूत्रे त्रिगुप्तः = मनोवाक्कायरूपगुप्तित्रयगुप्तः, त्रिदण्डविरतः = त्रिदण्डेभ्यो=मनोवाकायानामशुभ व्यापारेभ्यो विरतः =दूरीभूतः, च =पुनः विहग इवपक्षीय विषमुक्तः= कचिदपि प्रतिबन्धरहितः - अप्रतिबद्धविहार इति यावत् तथा-विगतमोहः = रागद्वेषरहितः सन् वसुधां =पृथिवीं विहरति = विचरतिस्म 'इति ब्रवीमि इत्यस्यार्थः पूर्ववद् बोध्यः ||६०|| इतिश्री - विश्वविख्यात - जुगद्वल्लभ - प्रसिद्धवाचक - पञ्चदश भाषाकलितललितकलापा'लापक- प्रविशुद्ध गद्यपद्यनेकग्रन्थनिर्मापक - बादिमानमर्दक- शाहू छत्रपति - कोल्हापुर- राजप्रदत्त - 'जैनशास्त्राचार्य' पदभूषित - कोल्हापुर राजगुरु - बालब्रह्मचारि - जैनाचार्य - जैनधर्मदिवाकर-पूज्य श्री घासीलालव्रतिविरचितायामुत्तरासूत्रस्य प्रियदर्शिन्याख्यायां व्याख्यायां महानिर्ग्रन्थीयं नाम विंशतितममध्ययनं सम्पूर्णम् । 'इरो वि' इत्यादि । अन्वयार्थ - - इधर ( इयरो वि- इतरोऽपि ) अनाथी मुनि भी ( गुणसमिद्धो- गुणसमृद्धः) साधु के सत्ताईस गुणों से युक्त तथा तिगुत्तिगुप्तोत्रिगुप्तिगुप्तः) मन, वचन एवं कायरूप गुप्तित्रय से गुप्त - सहित और (तिदंड विरओ - त्रिदंडविरतः) मन, वचन, काय के अशुभ व्यापाररूप दंडों से रहित ( विहग इव - विहग इव ) पक्षी की तरह ( विप्प मुक्कोविप्रमुक्तः) प्रतिबन्ध से रहित विगयमोहो- विगत मोहः) रागद्वेष से रहितशान्तचित्त होकर (वसुहं विहरइ - वसुधां विहरति ) इस भूमण्डलपर विचरने लगे । (तिबेमि - इतिब्रवीमि ) जैसा भगवान से सुना वैसा मैं कहता हूं ॥६०॥ इस प्रकार यह बीसवाँ अध्ययन समाप्त हुआ ||२०|| रामना गया पछी रमनाथी मुनि शुं यु तेने हे छे - "इयरो वि" ४त्यादि अन्वयार्थ —हवे मा त२३ इयरोवि- इतरोऽपि सनाथी भुनि गुणसमिद्धोसाधुना सत्तावीस गुणेोथी युक्त तथा तिगुत्तिगुत्तो- त्रिगुप्तिगुप्तः भन, वयन, मने प्राय३य गुप्तित्रयथी गुप्त सहित अने त्रिदंड विरओ - त्रिदंडविरतः भन, वयन, ने भयाना अशुल व्यापार ३५ ४थी रहित विहगइव - विहगइव पक्षीनी भाई विषमुको - विमुक्तः प्रतिषधाथी रहीत विगयमोहो- विगतमोहः रागद्वेषथी रहित शांत चित्त मनीने वसुहं विहरs - वसुधां विहरति आलूभउज उपर वियारवा साग्या. तिमि - इति ब्रत्रिम नेवु भगवाननी चासेथी सांभज्यु तेहु उहु छु, આ ઉત્તરાધ્યન સૂત્રનું વીસમું અધ્યયન સંપૂરું થયું. ઘરના उत्तराध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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