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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ. २० महानिर्ग्रन्थस्वरुपनिरुपणम् साम्प्रतं भार्यामाश्रित्य तिभिर्गाथाभिरनाथतामाह-- मूलम्-भारिया में महाराय !, अणुरता अणुव्वया। असुपुंण्णेहि नयणेहि, उरं में परिसिचंइ ॥२८॥ अन्नं पाणं चं होणं चं, गंधमल्लविलेवणं । मएं णायमणीयं वो, सो बाला नोवभुंजह ॥२९॥ खैणं पि में महाराय !, पासंओ वि न फिट्टइ । नं यं दुक्खा विमोएँइ, एस मज्झै अाहया ॥३०॥ छाया--भार्या मे महारान !, अनुरक्ता अनुव्रता । अश्रुपूर्णने यनैः, उरो मे परिषिञ्चति ॥२८ । अन्नं पानं च स्नानं च, गन्धमाल्यविलेपनम् । मया-ज्ञातमज्ञातं वा, सा बाला नोपभुङ्क्त ।।२९।। क्षणमपि मे महारान ! पावतोऽपि न भ्रंशते । न च दुःखाद् विमोचयति, एषा मम अनाथता ॥३०॥ टीका--'भारिया' इत्यादि । हे महाराज ! अनुरक्ता अनुरागवती, अनुव्रता पतिव्रता, मेमम भार्याऽपि अश्रुपूर्णः नयनैः मे-मम उरः परिषिञ्चति स्म ॥२८॥ न य विमोयंति-दुःखात् न विमोचयंति) दुःख से नहीं बचा सकी। (एसा मज्झ अणाया-एषा मे अनाथता) यह मेरी अनाथता है ॥२७॥ “भारिया में' इत्यादि। अन्वयार्थ—(महाराय-महाराज) हे राजन् ! जो (मे-मे) मेरी (भारियाभार्या) भार्या थी कि जो मुझ में (अणुरत्ता-अनुरक्ता) विशेष अनुरक्त एवं (अणुव्वया-अनुव्रता) पतिव्रताथी वह (अंसुपुण्णेहिं नयणेहि-अश्रुपूर्णैः नयनः) अश्रुपूर्ण नयनों से मेरे वक्षः स्थल को सींचती थी ॥२८॥ हुथी छ।वी स न ती. एसा मज्झ अणाहया-एषा मम अनाथता આ મારી અનાથતા છે. ૨૭ "भारिया में" त्याहि. सन्याय-महाराय-महाराज IN ! रेमे में भारी भारिया-भार्या स्त्री ती भाशा अनुरत्ता-अनुरक्ता भूभन मनु२४त सने अणुव्वया-अणुव्रता पतित्रता ती ते अंसुपुण्णेहि नयणेहि-अश्रुपूर्णैः नयनः मश्रुपू नयनाथी भा। વક્ષ:સ્થળને ભિંજવતી હતી. ૨૮ છે उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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