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________________ उत्तराध्ययनस्त्रे भल्लीभिः 'भाला' इति प्रसिद्धैः शस्त्रैः भिन्ना दारितः। च-पुनः पदिशै वश : विशेषैः विभिन्न:-मूक्ष्मखण्डीकृतश्च ॥५५॥ तथा चमूलम्--अवंसो लोहरहे जुत्तो, जलंते समिलाजुए। चोइओ तोतंजोत्तेहि, रोज्झो वा जंह पौडिओ ॥५६॥ छाया--अवशो लौहरथे युक्तो, ज्वलति शम्यायुते । नोदितस्तोत्रयोक्त्रः, रोज्झ इव पातितः ॥५६।। टीका-'अवसो' इत्यादि। हे अम्बा पितरौ ! नरकेषु अवशः पराधीनोऽहं परमाधार्मिकदेवैः शम्या. युते शम्या युगरन्ध्रक्षेपणीयकीलिका तया युते युक्त अलति-अग्निवद् देदीप्यमाने प्रतप्ते लौहरथे लोहमयदुर्वहरथे युक्तः योजितः, ततः परमाधार्मिकदेवैः स्थकर्षणार्थतोत्र योक्त्रैः-तोत्राणि-पाजनानिवृषभादिप्रेरणदण्डाः, योक्त्राणि नासापोतगलबद्धरज्ज्वादीनि तैनोंदितः प्रेरितः, वा-पुनरहं तैर्देवैरोज्झो यथा-गवय विदारित किया गया हूं तथा (पट्टिसेहिय-पटिशैश्च) शस्त्रविशेषों से (बिभिन्नो-विभिन्नः) सूक्ष्म टुकडे २ रूप में किया गया हूं ॥५५॥ तथा--'अवसो' इत्यादि। अन्वयार्थ--हे माततात ! नरकों में (अवसो-अवशः) सर्वथा पराधीन बना हुआ मैं परमाधार्मिक देवों द्वारा (समिलाजुए जलते लोहरहे जुत्तो-शम्यायुते ज्वलति लौहरथे युक्तः) युगरन्ध्र में क्षेपणीय कीलिका से युक्त तथा अग्नि के समान देदीप्यमान ऐसे प्रतप्त लोहरथ में जोता गया है। तथा (तोत्त जोत्तेहि-तोत्र योक्त्रैः) उस रथ को खंचने के लिये उन लोगोंने मुझे तोत्र-चाबुकों से खूब पीटा एवं मेरी विधाये छु तथा पट्टिसेहिय-पटिशैश्च अपना लोधी भा२१ विभिन्नोविभिन्न: नाना नाना दु४१ ४२राया ता. ॥ ५५॥ तथा--"अबसो" छत्यादि. मन्वयाथ- मातापिता! नरमा अवसो-अवशः सथा पराधीन मनेस सो ५२माधामि देवी द्वारा समिलाजुए जलंते लोहरहे जुत्तो-श्यामायुते ज्वलति लोहरथे युक्तः युगमा क्षेपणीय युवा तथा मनिीनी भा३४ દેદિપ્યમાન અને ખૂબ તપેલા એવા લેઢાના રથમાં જોતરવામાં આવ્યું હતું તથા तोत्तमोत्तेहि-तोत्रयोक्त्रैः स २थने याने माटे से साये भने यामुढाथी उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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