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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे - तथा-- मूलम्--अहिवेगंतर्दिट्रीए, चरित्ते पुत्तं ! दुच्चरे । जवा लोहमया चेर्व, चावेयव्वा सुदुक्करं ॥३८॥ छाया-अहिरिवैकान्तदृष्टया, चारित्रं पुत्र ! दुश्चरम् । यवा लोहमया इव, चर्वितव्याः सुदुष्करम् ॥३८॥ टीका--'अहि' इत्यादि। हे पुत्र ! साधुः अहिरिव-सर्प इव एकान्तदृष्टया चरेत् । अयं भावःयथा सर्प एकान्तदृष्टया अनन्याक्षिप्तया दृशा मार्गे चरति, तथैव साधुरपि एकान्तदृष्टया अनन्याक्षिप्तया बुद्धया चारित्रमार्ग चरेदिति । परन्तु विषयेभ्यो मनसो दुर्निवारत्वादिदं चारित्रं दुश्चरम् दुःखेनाचरणीयम् । किं च-इव-यथा लौहमया =लौहनिर्मिता यवाचयितव्या दुष्कराः, तथैवेदं चारित्रं सुदष्करम् सुदुश्वरम् । लोहमययवचर्वणवत् चारित्रं मुदुष्करमिति भावः ॥३८॥ फिर सुनो-'अहिवेतदिट्ठीए' इत्यादि । अन्वयार्थ-हे पुत्र ! (अहिवेगंतदिट्ठीए-अहिरिव एकान्त दृष्ट्या साधुः मार्गे चरेत्) सर्प जिस प्रकार अपने चलने योग्य मार्ग पर इधर उधर दृष्टि डालकर नहीं चलता है किन्तु उसी एक अपने उसी मार्ग पर दृष्टि जमा कर चलता है उसी तरह साधुका भी यही मार्ग है कि वह भी चारित्र मार्ग पर चलता हुआ इधर उधर न देखकर उसी और लक्ष्य लगाकर चलता रहे परन्तु यह चलना रूप (चरित्ते-चारित्रम्) चारित्र (दकरं-दष्करम् ) दुष्कर है। क्योंकि मन का विषयों से हटाना बहुत कठिन काम है । तथा (चेव-इव) जैसे (लोहमया जवा-लौहमया यवाः) लौहमय यवा (चावेयव्वा-चर्वितब्याः) चबाना दुष्कर है उसी प्रकार चारित्र भी दुष्कर है। ५ -“अहिवेगंतदिट्ठीए" त्याह. अन्वयार्थ-पुत्र! अहिवेगंतदिहीए-अहिरिव एकान्त दृष्टया सप रे પિતાના ચાલવાના માર્ગથી આડીઅવળી દષ્ટિ ફેરવીને ચાલતું નથી, પરંતુ પોતે જે તરફ જાય છે એ તરફ જ સીધી દષ્ટિ રાખીને જ ચાલે છે આજ પ્રમાણે સાધુને પણ એજ માર્ગ છે કે, તે પણ ચારિત્ર માર્ગ ઉપર ચાલતાં આડું અવળું ન જોતાં से त२६ स राभान यासता २ छ. ५ मा यसपा ३५ चरित्ते-चारित्रम् यारित्र दुकरं-दुष्करम् हु४२ छ. म भननु विषयोथी टायु घ ४४६५ आम छ. १जी मेम लोहमया जवा-लौहमया यवा सोढाना याने चावेयव्वाचर्वितव्या या११॥ से हु०४२ छ. मेरी प्रमाणे यारित्र पाण ५४ हु०४२ छ. उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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