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________________ ५०६ उत्तराध्ययन सूत्रे टीका--' आगासे' इत्यादि । हे पुत्र ! अयं गुणोदधिः - गुणाः = ज्ञानादयस्त एवं उदधिः = समुद्रो दुस्तरत्वाद् गुणोदधिः = गुणसमुद्र आकाशे गङ्गास्रोत इव = आकाशगामिन्या गङ्गायाः स्रोत इव दुस्तरः । लोकरूढचेदमुक्तम् । तथा अन्यनदीनां प्रतिस्रोत इव = प्रतिकूलधारेव दुस्तरः । तथा बाहुभ्यां सागर इव तरीतव्योऽयं गुणमहोदधिः । यथा-बाहुभ्यां समुद्रो दुस्तरः, तथा गुणोदधिरपि दुस्तरः । वाङ्मनः कायनियन्त्रणस्य दुःशक्यत्वाद् गुणोदधितरणं दुष्करमिति सुत्राशयः ||३६|| किंच - 'आगासे' इत्यादि । अन्वयार्थ - हे पुत्र ! (गुणोदही-गुणोद्धिः) गुणोदधि - ज्ञानादिक गुणरूप समुद्र (आगासे गंगसोओव्व-आकाशे गंगास्रोत इव) आकाशगामी गंगा के प्रवाह समान दुस्तर है । अथवा (पुडिसोओच्वदुत्तरोप्रतिस्रोत इव दुस्तर :) प्रतिकूल स्रोत के समान तैरना अशक्य है । अथवा (बाहाहिं सागरो चेव तरियव्वो- बाहुभ्यां सागर इव तरीतव्यः) बाहुओं द्वारा जैसे सागर पार करना सर्वथा अशक्य है उसी प्रकार मनवचन एवं काय का नियंत्रण दुःशक्य होने से गुणोदधि का तरण भी तुम्हारे द्वारा सर्वथा असंभव है । भावार्थ - मातापिता समझाते हुए मृगापुत्र से कह रहे हैं कि बेटा ! जिस प्रकार आकाशगामी गंगाका प्रवाह अथवा प्रतिकूल नदी का प्रबल प्रवाह तरा नहीं जा सकता है, और न समुद्र ही बाहुओं द्वारा पार किया जा सकता है उसी प्रकार यह गुणोदधि भी तुम्हारे द्वारा पूर्णरूप से पालित नहीं हो सकता है - पार नहीं किया जा सकता है ( आकाश गंगा लौकिक उदाहरण है ) ||३६|| प्रिय – “आगासे" इत्यादि. अन्वयार्थ–डे पुत्र ! ॥ गुणोदही-गुणोदधिः गुणविधि - ज्ञानाहि गु३५ समुद्र आगासे गंगसोओन्त्र - आकाशे गंगास्रोत इव महाशगामी गंगाना प्रवाडनी भाई हुस्तर छे. अथवा पडिसोओव्व दुत्तरो - प्रतिस्रोत इव दुस्तरः प्रतिडुण खोतनी भाइ तरवु अशम्य छे. आ प्रमाणे बाहुहिं सागरो चेत्र तरियन्त्रोबाहुभ्यां सागर इत्र तरीतव्यः बाहुयोथी यावा समुद्रने पार ४२वानुं स ंपूर्णुतः અશકય છે. આ પ્રમાણે મનવચન અને કાયાનું નિય ́ત્રણ કરવું સર્વથા અશકય છે. આ ગુણ્ણાધિને તરવું પણ તમારા માટે સથા અસંભવ છે. ભાવા—માતાપિતા સમજાવતાં મૃગાપુત્રને કહી રહેલ છે કે, બેટા ! જે પ્રમાણે આકાશગામી ગંગાના પ્રવાહ અથવા પ્રતિકુળ નદીના પ્રમળ પ્રવાહ તરી શકાતા નથી અને ન તા સમુદ્ર પણ બાજુએથી પાર કરી શકાય છે. આ પ્રમાણે આ ગુણાધિ પણ તારાથી પૂર્ણ પણે પાળી શકાય તેમ નથી-પાર કરી શકાય તેમ નથી. ।૩૬।। उत्तराध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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