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________________ ५०१ प्रियदर्शिनी टीका अ. १९ मृगापुत्रचरितवर्णनम् पुनरपि श्रामण्यदुष्करतां प्रदर्शयतिमूलम्-कावोया जो इमा वित्ती, केसलोओ यं दारुणो। दुकवं बंॐव्वयं घोरं, धीरेउं अमहर्पणा ॥३३॥ छायाकापोती या इयं वृत्तिः, केशलोचश्च दारुणः । दुःखं ब्रह्मत्रतं घोरं, धारयितुममहात्मना ॥३३॥ टीका-'कावोया' इत्यादि। साधूनां या इयं वृत्तिः संयम यात्रा निर्वहणोपायरूपा सा कापोती-कपोताः-पक्षि विशेषास्तेषामियं कापोती, कापोती-इव कापोती, कपोतवृत्तितुल्या। यथा कपोता नित्यशङ्किताः स्वाहारग्रहणे प्रवत्तेन्ते, कृताहारास्ते द्वितीय दिव. सार्थ न किमपि संगृह्णन्ति । यावतोदरपूर्तिभवति, तावदेव गृहन्ति । एवंमेव साधवोऽप्येवणादोषेभ्यो नित्यं शङ्कमाना आहारग्रहणे प्रवर्तन्ते । आहारं हैं। इनको समतापूर्वक साधु को सहन करना चाहिये । नहीं तो वह साधु नहीं है। यदि थोडी देरके लिये मान लिया जाय कि ये बातें साधुअवस्था में सब के साथ घटित नहीं हो सकती हैं तो भी भिक्षाचर्या तो सबको करनी ही पड़ती है। यह क्या कम दुःखकी बात है? इसी तरह याचना करना तथा याचना करने पर भी मांगी हई वस्तु नहीं मिलना यह तो और भी अधिक कष्ट है। अतः बेटा। इस साधु बनने के आग्रह को छोड दो। इसके होने में बडे दुःख हैं ॥३२॥ फिर भी श्रामण्य की दुष्करता दिखलाते हैं-'कावोया' इत्यादि । अन्वयार्थ- साधुजनों की (जा-या) जो (इमा-इयम्) यह संयमयात्रा के निर्वहन के उपायरूप (कावोया-कापोती) कापोती (वित्ती-वृत्तिः) वृत्ति है यह बडी दारुण है। तथा (केसलोओय दारुणो केशलोचश्च दारुणः) વાર માટે એમ માની લેવામાં આવે કે આવી બધી વાતો સાધુ અવસ્થામાં સઘળાને બનતી નથી, પરંતુ ભિક્ષાચર્યા તે બધાએ કરવી જ પડે છે એ શું ઓછા દુઃખની વાત છે ? આ પ્રમાણે યાચના કરવી અને યાચના કરવા છતાં પણ માંગેલી વસ્તુ ન મળે તે અતિ દુઃખદ છે, માટે હે બેટા ! આ સાધુ બનવાના આગ્રહને છોડી દે કારણ કે સાધુ બનવામાં ભારે દુઃખ છે. એ ૩૨ છે छतi ५ श्राभएयनी हु४२ता मताव छ-"कावोया" त्याहि. या-क्याथ-साधुजनानी जा-या इमा-इयम् । सयभयात्राना निर्वाहुना पाय३५ कावोयावित्ती-कापोतीवृत्तिः पति वृत्ति छे ते भूम डीन छ. तथा केसलोओय दारुणो केशलोचश्च दारुणः पायान-शने मे उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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