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________________ उत्तराध्ययन सूत्रे स्वामी प्रज्वलिताद गृहात् सारभाण्डानि = महामूल्य वस्त्राभरणादीनि निष्कासयति, तथा असारं जीर्णवस्त्रादिकम् अपोज्झति = परित्यजति ||२२|| दृष्टान्तमुक्ता दाष्टन्तिकमाह मूलम् - एवं लोएं पलित्तंमि, जरीए मरणेणं यॅ । अप्पीणं तारइस्सामि, तुम्भेहिं अणुर्मन्निओ ॥२३॥ छाया -- एवं लोकं प्रदीप्ते, जरया मरणेन च । आत्मानं तारयिष्यामि, युष्माभिरनुमतः ||२३|| एवम् = उपर्युक्तदृष्टान्तवत् जरया=बार्द्धकेन मरणेन = मृत्युना च प्रदीप्ते - प्रदीप्तः प्रज्वलित इव प्रदीप्तस्तस्मिंस्तथा अत्यन्तव्याकुलीभूतेऽस्मिन लोके= संसारेऽहमपि युष्माभिरनुमतः = आज्ञापितः सन् आत्मानं तारयिष्यामि । लगजाने पर (तस्स गेहस्स जो पहू-तस्य गेहस्य यः प्रभुः) उस घरका जो स्वामी होता है वह ( सार भंडाई नीणेइ - सारभाण्डानि निष्कासयति) महामूल्य वस्त्रादिक तथा आभरणादिक कीमती चीजोंको निकाल लेता हैतथा (असारं अवज्झइ - असारं अपोज्झति) असार वस्तुओंका परित्याग कर देता है || २२ ॥ 1 ४८८ अब इसी का दान्तिक कहते हैं--एवं लोए' इत्यादि । अन्वयार्थ - - ( एवं - एवं ) इसी तरह (जराए मरणेण - जरया मरणेन ) जरा एवं मरण से लोए पलित्तमि - लोके प्रदीप्ते ) यह सारा संसार जल रहा है सो ऐसी स्थिति वाले इस लोक में से ( अप्पाण - आत्मानम् ) मैं भी अपने आपको (तुमेहिं अणुमनिओ तारइस्सामि - युष्माभि अनुमतः तारयिष्यामि) आपके द्वारा आज्ञापित होकर बाहर निकाल लूंगा । छत्यारे तस्स गेहस्स जो पह-तस्य गेहस्य यः प्रभुः मे धरना ने स्वामी हाय छते सारभंडाई नीणेs - सारभाण्डानि निष्कासयति श्रीमती वस्त्राहिङ तथा मालशु स्याहि श्रीमती थीलेने सौ प्रथम डाढी से छे तथा असारं अवज्झइ - असारं अपोज्झति અસાર વસ્તુઓને પરિત્યાગ કરી દે છે. ! ૨૨ ॥ वे नुहाष्टति उहे छे." एवं लोए " इत्यादि ! अन्वयार्थ--एवं-एवम् ४ रीते जराए मरणेण - जरया मरणेन ४२ भने भरणुथी लोए पलित्तंमि - लोके प्रदीप्ते या सघणो संसार सजगी रह्यो छे, तो मेवा स्थितिवाजा या बेोभांडुप अप्पा - आत्मानम् भारी लतने तुन्भेहिं अणुमन्निओ तारइस्सामि - युष्माभि अनुमतः तारयिष्यामि यापनी आज्ञा भजतां બહાર કાઢવા માંગુ છુ. उत्तराध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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