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________________ ४६७ प्रियदर्शिनी टीका अ. १९ मृगापुत्रचरितवर्णनम् मूलम्--नंदणे सो उ पोसाए, कीलेए संह इथिंहि । देवे दोगुंदंगे चे, निच्चं मुइयंमाणसे ॥३॥ छाया-नन्दने स तु प्रासादे, क्रीडति सह स्त्रीभिः । देवो दौगुन्दुक इव, नित्यं मुदितमानसः ॥३॥ टीका--'नंदणे' इत्यादि। मुदितमानसः हृष्टचित्तः स मृगापुत्रो नन्दने नन्दननामके वास्तुशास्त्रोक्त विशिष्टलक्षणीपेते प्रासादे दौगुन्दुकः त्रायस्त्रिंशो देव इव स्त्रीभिः सह नित्य क्रीडति । 'तु' शब्दः पूरणे ॥३॥ मूलम्- मणिरयणंकुहिमतले, पासायोलोयणे ठिओ। आलोएंइ नयरस्स, चउक्क तिगचच्चरे ॥४॥ छापा--मणिरत्नकुटिमतले, प्रासादालोकने स्थितः । __ आलोकयति नगरस्य, चतुष्क त्रिक चत्वराणि ॥४॥ (जुवराया-युवराजः) युवराज बना दिया था। (दमीसरे-दमीश्वरः) जन्म से ही वह इन्द्रियों को अत्यन्त दमन करने वाले होने से लोग इनको दमीश्वर कहते थे ॥ २ ॥ 'नंदणे' इत्यादि. अन्वयार्थ—(मुइयमाणसे-मुदितमानसः) प्रसन्नचित्त हो कर यह युवराज (नंदणे पासाए-नन्दने प्रासादे) नन्दन नाम के राजमहल में (दोगुंदगे देवेव्य-दोगुन्दुक देव इव) त्रायस्त्रिंश देव की तरह (इत्थि हिं सह कीलए-स्त्रीभिः सह नित्यं क्रीडति) स्त्रियों के साथ नित्य क्रीडा किया करते थे ॥ ३ ॥ -दयितः सत्यत प्रिय eusna sतो. भाता पिता सेन जुवराया-युवराजः युवराप? स्थापित ध्या. दमीसरे-दमीश्वरः मधील से छन्द्रियान भूमकर દમન કરનાર હોવાથી લોકો તેને દમીશ્વર પણ કહેતા હતા. ૨ "नंदणे" त्याह! मन्क्या -मुइयमाणसे-मुदितमानसः प्रसन्नचित्त मनार थे यु१२००४ नंदणे पासाए-नन्दने प्रासादे नन्दन नामना भाउमा दोगुंदगे देवेव-दोगु. न्दक देवइव प्रायविंश हवनी भा३४ इथिहिं सह कीलए-स्त्रिभिः सह नित्यं क्रीडति खिमानी साथै नित्य ४ीडा ४२तो तो. ॥ ३ ॥ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૩
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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