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________________ उत्तराध्ययसूत्रे विविधाः नानाविधाः शिल्पिन:-चित्रकाररथकारादयश्च ये सन्ति । तेषां क्षत्रियादिनां-तान् क्षत्रियादीन् यः श्लोकपूज-श्लोक:एते शोभना इत्येवंरूपा पूजा कीर्तिः, पूजा-एतेषां सत्कारपुरस्कारं कुरुतेत्येवं रूपा पूजा, अनयोः समाहारस्तत् , न वदति-न कथयति। किन्तु तत्=श्लोकपूजादिकं परिज्ञाय=ज्ञ परिज्ञया सावद्यरूपं ज्ञात्वा प्रत्याख्यानपरिज्ञया परित्यज्य यः परिव्रजेत्-संयममार्गे गच्छेत् स भिक्षुरुच्यते । 'माहण' 'भोइय' इति पदद्वयं लुप्तपथमान्तम् ॥९॥ अपरं च-- मूलम्-गिहिणो जे पव्वइयेण दिडा, अप्पवइएण व संथुया हवेजा। ते सि इहलोइयफलटा, जो संथवं न करेई से भिक्खू ॥१०॥ छाया--गृहिणो ये प्रजितेन दृष्ट्वा, अप्रबजितेन वा संस्तुता भवेयुः । तेषामैहलौकिकफलार्थ, य; संस्तवं न करोति स भिक्षुः ॥१०॥ टोका--'गिहिणो' इत्यादि । ये गृहिणो गृहस्थाः प्रत्रजितेन गृहीतदीक्षेण साधुना दृष्टाः अवलोकिता तथा ब्राह्मण जनोंकी (भोइण-भोगिकाः) एवं भोगी जनोकी राज्यमान्य अमात्य आदिकों की तथा (विविहाय सिप्पिणो-विविधाः शिल्पिनः) अनेक प्रकार के शिल्पीजनोंकी-रथकार, चित्रकार आदि, कारीगरों की-(सीलोगपूयं-श्लोकपूजम् ) जो मुनिजन "ये बहुत अच्छे हैं इनका सत्कार पुरस्कार करो" इस प्रकार दूसरों से (नो वयइ-न वदति) नहीं कहता है किन्तु उनकी ( तं-तत् ) उस श्लोक पूजा को (परिन्नायपरिज्ञाय) ज्ञ परिज्ञा से सावधरूप जानकर एवं प्रत्याख्यान परिज्ञा से उसका परित्याग कर (परिव्वए-परिव्रजेत् ) संयममार्ग में विचरता है (सभिक्खू-स भिक्षुः) उसका नाम भिक्षु है ॥९॥ भने भोइण-भोगिकाः नानी, यमान्य मामात्य माहिनी तथा विविहाय सिप्पिणो-विविधाः शिल्पिनः मने प्रारना शिल्पा नानी २१ है२०४२, यि मावि रीगनी सिलोगपूर्य-श्लोकपूजाम् २ भुनिन “से घा०४ सास छ, मेनेस२ पु२०४।२ ४१.” मा प्रमाणे मीलने नो वयइ-नो वदति ४ा नथी परंतु तेभनी तं-तत् मे as onने परिनाय-परिज्ञाय परिशाथी सावध३५ मीन भने प्रत्याश्यान ५२ज्ञाथी परित्याग री परिचएपरिव्रजेत् सयममा भi वियरे छे स भिक्खू-स भिक्षुः तेनु नाम लिनु छ. उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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