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________________ ११४ उत्तराध्ययनसूत्रे ततो राजा यत्कृतवांस्तदाहमूलम्-आसं विसर्जइत्ताणं, अणगारस्स सो निवों। विणयेणं वंदई पाए, भगवं! एत्थे मे खमे ॥८॥ छाया-अश्वं विसृज्य खलु, अनगारस्य स नृपः। विनयेन वन्दते पादौ, भगवन् ! अत्र मे क्षमस्व ॥८॥ टीका-'आसं' इत्यादि : स संजयनामा नृपः अश्वं विसृज्य-विमुच्य गर्दभालेरनगारस्य पादौ विनयेन =सविनयं वन्दते ब्रवीति च-हे भगवन् ! अत्र मृगवधे जातं ममापराधं क्षमस्व ॥८॥ ततः किमभूदित्याहमूलम्--अहं मोणेणे सो भगवं, अणंगारे झाणमस्सिओ। रायाणं णं पडिमंते, तओ" राया अयदुओ ॥९॥ छाया- अथ मौनेन स भगवान् , अनगारो ध्यानमाश्रितः। राजानं न प्रतिमन्त्रयति, ततो राजा भयद्रतः ॥९॥ केन) घातकने मृगोंको नहीं मारा है किन्तु (मगा-मनाक) व्यर्थ ही उन (अगगारो-अनगारः) मुनिराजको (आहओ-आहतः) मारा है ॥७॥ फिर राजाने क्या किया सो कहते हैं-'आसं' इत्यादि । अन्वयार्थ-(सोनिवो-सानृपः) उस राजाने (आसं विसज्जइत्ताणं-अश्वं विमृज्य खल) घोडेको छोडकर (विणयेणं-विनयेन) बडे विनयके साथ (अणगारस्त पाए वंदइ-अनगारस्त पादौ वंदते) उन मुनिराजके दोनों चरणोंमें अपना मस्तक झुका दिया और कहने लगा (भगवंभगवन् ) हे नाथ ! (एत्थ मे खमे-अत्र में क्षमस्व) इस मृगवधसे होनेवाले मेरे अपराधको आप क्षमा करें ॥८॥ Gधानमा मेटेस। अणगारो-अनगारो भुनिराशने आहओ-आहतः भारेस छ. ॥७॥ या पछी रात से शु४यु ते ४ छ.-"आसं" त्या ! अन्वयार्थ --२मा प्रसारनी भनमा पश्चात्ता५४२त। सो निवो-सः नृपः २० आसं विसज्जइत्ताणं-अश्वं विसृज्य खलु धाडाने छोडीन विणएणं-विनयेन १४ विनयनी साथे अणगारस्स पाए वहइ-अनगारस्य पादौ वन्दते थे मुनिराना य२ मा पातानु भरत झुपी ही मने ४ा भांडयु, भगवं-भगवन् नाथ ! एत्थमे खमेअत्र मे क्षमस्व मा भृगसाना थी थये। भा२१ अपराधने आ५ क्षमा ४२ ॥८॥ उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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