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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे समन्तात् परिवारितः परिवेष्टितः सन् विनिर्गतः। 'हयाणीए' इत्यादौ आपत्वात् तृतीयार्थे प्रथमा ॥२॥ विनिर्गत्य यत्कृतवांस्तदाहमूलम्-मिए छभित्ता हयंगओ, कंपिल्लुजाणकेसरे । भीए संते मिएं तत्थे, वहे. रसमुच्छिए ॥३॥ छाया-मृगान् क्षोभयित्वा हयगतः, काम्पिल्योद्यान के शरे । भीतान् श्रान्तान् मितांस्तत्र, हन्ति रसमूर्छितः ॥३।। टोका--'मिए' इत्यादि। हयगतः अश्वारूढः रसमूच्छितः-मृगमांसास्वादलोलुपः स संयतो राजा तत्र काम्पिल्योद्यानके शरे कम्पिल्यनगरस्थे केशरनामकोद्याने मृगान् क्षोभयित्वा =प्रेरितान् कृत्वा भीतान्-मरणभयत्रस्तान् श्रान्तान् इतस्ततः परिधावनेन ग्लानान् , मितान्=कतिपयान् मृगान् हन्ति=हतवान् ॥३॥ पदाति सेना से (सञ्चओ-सर्वतः) समन्ततः (परिवारिए-परिवारितः) परिवृत होता हुआ (विनिग्गए-विनिर्गतः) नगरसे शिकार खेलने के लिये निकला इस प्रकार का संबंध इस श्लोक के साथ लगा लेना चाहिये ॥२॥ निकल कर जो किया सो कहते हैं-'मिए' इत्यादि ! अन्वयार्थ (रसमुच्छिए-रसमूच्छितः) मृग मांस के स्वाद का लोलुपी वह संजय राजा (हयगओ-हयगतः) घोडे पर सवार होकर (कंपिल्लज्जाणकेसरे-काम्पिल्योद्यानकेशरे) काम्पिल्य नगर के केशर नामक उद्यान में पहुँचा और वहां पहुंचकर उसने (भिए छुभित्तामृगान् क्षोभयित्वा) मृगों को प्रेरित किया । जब ये (भीए-भीतान) इसकी मरणभय से भयत्रस्त (संते-श्रान्तान्) श्रान्त, हुए उनमें से इसने (मिए मितान्) कितनेक मृगोंको (वहेइ-हन्ति) मारे ॥३॥ सब रीते परिवरिए-परिवारितः परिवृत थने विनिग्गए-विनिर्गतः नारथी બહાર શિકાર ખેલવા માટે નીકળ્યા. આ પ્રકારનો સંબંધ આ શ્લેકની સાથે છે. રા सबसे नगर मा२ नीजी शुथु तेने ४ छ-"मिए" त्याहि ! ___ मन्वया--रसमुच्छिए-रसमच्छितः भृग मांसना स्वापि सेवा मे silपयनगरना in हयगओ-हयगतः घोडा५२ स्वा२ धन कंपिल्लजाणकेसरेकम्पिल्योद्यानकेशरे-स२ नामन: धानमा गया, त्यां पडांयीन ते मिए छुभित्ता-मृगान् क्षोभयित्वा भृगाने मारवा माटे प्रेरित ा यारे ते भीएभीतान नी मा प्रा२नी सेना छत्याहन ने धानमांना भृ मयभीत मन्या संते-श्रान्तान् श्रान्त मन्या त्यारे तेमांथा 2 भृगाना । शी२ ४ी. ॥3॥ उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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