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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ. १७ पापश्रमणस्वरूपम् वस्तुं प्रतिलेखयति, किंचिन्न प्रतिलेखयति, अविधिना वा प्रातलेखयतीत्यर्थः। तथा-पात्रकम्बलं पात्रं च कम्बलं च उपलक्षणत्वात् स्वकीयं सर्वमुपधिम् , प्रतिलेखनक्रियायाम् अनायुक्तः अनुपयुक्तो भवति, स पापश्रमण इत्युच्यते ॥९॥ तथा--- मूलम् --पडिलेहेई पमत्ते से, जे किं चि है णिसामियाँ । __ गुरु परिवभाए णिच्चं, पावसमणे ति वुच्चइ ॥१०॥ छाया--प्रतिलेखयति प्रमत्तः सः, यत् किंचिद् हु निशम्य । गुरुपरिभावको नित्यं, पापश्रमण इत्युच्यते ॥१०॥ टीका--'पडिलेहेइ' इत्यादि । यत्किचिद हु 'हु' शब्दोऽप्यर्थे, यत्किचिदपि यां कांचिदपि वाती निशम्य श्रुत्वा तद्व्यग्रचित्ततया प्रमत्तः सन् प्रतिलेखयति वस्त्रपात्रादेः प्रतिकरता है-कितनेक उपकरणों का प्रतिलेखन करता है, कितनेकका नहीं करता है अथवा अविधिपूर्वक प्रतिलेखना करता है, तथा (पायकंबलं अवउज्झइ-पात्रकम्बलम् अपोज्झति) पात्र एवं कम्बल आदि अपनी उपधिकी संभाल नहीं रखता है किसी को कहीं पर किसी को कहीं पर इस तरह से उनको जहां तहां रख देता है एवं (पडिलेहणा अणाउत्ते-प्रतिलेखनायामनुपयुक्तः) प्रतिलेखन क्रियामें जो अनुपयुक्त अर्थात् उपयोगी नहीं रखा-रहता हो-प्रतिलेखन क्रिया करता तो है पर उसमें उसका उपयोग न लगा हो ऐसा साधु (पावसमणेत्ति वुच्चइपापश्रमण इत्युच्यते) पापश्रमण कहा गया है ॥९॥ तथा-पडिलेहेइ” इत्यादि अन्वयार्थ जो साधु (जं किंचि णिसमिया-यत् किञ्चित् अपि निशम्य) इधर उधर की बातो को सुनता हुआ (पडिलेहेइ-प्रतिलेखयति) પ્રતિલેખન કરે છેકેટલાકનું કરતા નથી અથવા અવિધિપૂર્વક પ્રતિલેખન કરે છે, तथा पायकंबलं अवउज्झइ-प्रात्रकंबलम् अपोज्झति पात्र भने ४२० मा पोतानी સઘળી ઉપધિની સંભાળ રાખતા નથી કેઈને ક્યાં અને કોઈને કયાં એ રીતે એને न्यो त्यो रामी हे छ भने पडिलेहणा अणाउत्ते-प्रतिलेखनायामनुपयुक्तः પ્રતિલેખન ક્રિયા કરે તે છે પરંતુ તેમાં તેને બરાબર ઉપગ કરેલ ન હોય. આવા સાધુને પાપશ્રમણ કહેવામાં આવેલ છે. છેલ્લા तथा-"पडिलेहेइ" त्यादि ! अन्वयार्थ- साधु जं किंचि णिसामिया-यत्किंचित अपि निशम्य ही नहीनी पाताने सin २डीन पडिलेहेइ-प्रतिलेखयति पत्रो पात्रानी प्रतिमना उत्तराध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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