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________________ - - - उत्तराध्ययनसूत्रे लयं-महतामालयः आश्रयो महालयस्तं पन्थान पन्थाः-मार्गः स च भावतो महद्भिस्तीर्थंकरादिभिरप्याश्रितः सम्यग् दर्शनादिरूपो मोक्षमार्गस्तं, अवतीर्णाऽसि= अनुप्रविष्टो भवसि । कश्चिन्मार्गमारूढोपि न गच्छेत् अत आह-माग विशोध्य गच्छसि-सम्यग् दर्शनाद्यनुपालनेन मोक्षमार्गे गन्तुं प्रवृत्तत्वात् । तदेवं प्रवृत्तः सन् हे गौतम ! समयमपि मा प्रमादयेः । 'कंटगापहं' इत्यत्राऽऽकार आषत्वात् ॥३२॥ मोक्षमागै प्रतिपन्नस्य कदाचित् पश्चात्तापसंभवे तनिराकरणार्थमाह अबले जह भारवाहए, मा मग्गे विसमेऽवाहिया। पच्छा पच्छाणुतावए, समयं गोयम ! मी पायए ॥३३॥ महालयं पन्थानं अवतीर्णः असि) महापुरुषों द्वारा सेवित मार्गमें अवतीर्ण हुए हो एवं ( मग्गं विसोहिया गच्छसि-मार्ग विशोध्य गच्छसि ) उस मार्ग को शोधकर तुम उस पर चलते रहो अतः (गोयम-गौतम ) हे गौतम ! ध्यान रखो कि इस मार्ग पर चलते हुए तुम एक समय मात्र भी स्खलित न हो सको। ___ भावार्थ-महावीर प्रभु गौतम को समझाते हुए कह रहे हैं कि हे गौतम ! द्रव्य और भाव की अपेक्षा दोनों प्रकार के कंटकों से आकीर्ण सांसारिक मार्ग का परित्याग कर तुम तीर्थंकर आदि जैसे महापुरुषों दारा सेवित सम्यग्दर्शन आदि रूप मुक्तिमार्ग पर अवतीर्ण हुए हो अतः बहुत संभलकर इस पर चलते रहना-यहां एक समय का भी प्रमाद करना तुम्हें उचित नहीं है । बबूल आदि के प्रसिद्ध कांटे द्रव्यकंटक हैं और चरक आदि जो कुश्रुत हैं वे भावकंटक हैं। ॥३२॥ अवशोध्य परित्याग ४ीने तमे महालयं पह ओइन्नोऽसि-महोलयं पन्थान अवतीर्ण : असि भडा५३षो द्वारा सेवित भागे मती थय। छ।. तमा म गं चिसोहिया गच्छसि-मार्ग विशोध्य गच्छसित भागनाधीनतमेत भागे मागण १धी २॥ छो. तेथी गोयम-गौतम गौतम! ते भागे nadi मे समय પણ છેટે વ્યય ન થાય તેનું તમે ધ્યાન રાખશે. ભાવાર્થ-મહાવીર પ્રભુ ગૌતમને સમજાવતાં કહે છે કે હે ગૌતમ ! દ્રવ્ય અને ભાવની અપેક્ષાએ બન્ને પ્રકારના કંટકથી છવાયેલા સાંસારિક માગનો પરિત્યાગ કરીને તીર્થકર આદિ મહાપુરુષો દ્વારા સેવિત સમ્યગદર્શન આદિ રૂપ મુકિત માર્ગ પર તમે અવતીર્ણ થયા છે. તે ઘણી જ સાવચેતી રાખીને તેના પર ચાલતા રહે છે તે માર્ગે ચાલતા એક સમયનો પણ પ્રમાદ કરવે તમારે માટે ઉચિત નથી. બાવળ આદિના કાંટાને દ્રવ્યકંટક કહે છે, અને ચરક આદિ કુશ્રુતને ભાવકંટક કહે છે કે ૩૨ છે ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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