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________________ प्रियदर्शिनी टीका. अ० ९ नमिचरिते नभिइन्द्रयोः संवादः _ 'अगारधर्म आश्रयणीयः' इति प्रतिज्ञा, सुखतरसाध्यत्वेसति सकलकल्याणजनकत्वात् ' इति हेतुः, यद् यत् सुखतरसाध्यं सत् सकलकल्याणजनकं तत् तद् आश्रयणीयम् , यथा प्राणातिपात-विरमणम्' इत्युदाहरणम् , सुखतरसाध्यत्वे सति सकलकल्याणजनकश्चायमगारधर्मः इत्युपनयः, तस्माद्-आश्रयणीयः अगारधर्म: इति निगमनम् । तथा-मुखतरसाध्यत्वे सति सकलकल्याणजनकत्वम् , आश्रणीयत्वं विना नोपपद्यत इति कारणम् । एयमट्ठ निसामित्ता' इत्याद । अन्वयार्थ-(एयम निसामित्ता-एतमर्थं निशम्य ) इस अनन्तरोक्त अर्थ को सुनकर ( हेउकारणचोइओ - हेतुकारणनोदितः) हेतु एवं कारण से प्रेरित हुए (नमी रायरिसी-नमिः राजर्षिः) नमिराज ऋषि ने (तओ-ततः) बाद ने (इणमब्बवी-इदं अब्रवीत) इस प्रकार कहा। राजऋषि के प्रति इन्द्र ने इस प्रकार कहा था कि-"अगारधर्मः आश्रयणीयः, यह प्रतिज्ञावचन है, 'सुखतरसाध्यत्वे सति सकल कल्याणजनकत्वात् यह हेतु, गृहस्थाश्रम आश्रयणीय है क्यों कि यह सुखतर साध्य होते हुए भी सकलकल्याण का जनक है। जो जो सुखतर साध्य होकर सकल कल्याणों का जनक होता है वह २ आश्रयणीय होता है, जैसे प्राणातिपात विरमण उदाहरण, उसी तरह का यह है, यह उपनय वचन है, इसलिये आश्रयणीय है, यह निगमन वचन है। तथा इस में सुखतर साध्यत्व होने पर सकल कल्याण जनकता आश्रयणीयता के विना नहीं बनती है, यह कारण है। हेतु और साध्य की अन्यथानुपपत्ति “एय म निसामित्ता" त्यादि. म-क्याथ-एयम; निसामित्ता-एतमथ निशम्य ॥ अनन्तत अथन सांजी हेउकारणचोइओ-हेतुकारणनोदितः उतु भने १२९४थी प्रेरित अनेसा नमि रायरिसी-नमिः राजर्षिः नभिषि तओ-ततः माहमा इणमब्बवीइदमब्रवीत् ॥ प्रारे . २०४ापनेन्द्र मा प्ररे धुं तु , “ अगारधर्म: आश्रयणीयः" से प्रतिज्ञा पाय छ 'सुखतरसाध्यत्वे सति सकलकल्याणजनकत्वात् स तु વચન છે ગૃહસ્થાશ્રમ, આશ્રયણીય છે કેમકે, એ સુખસર સાધ્ય હોવા છતાં પણ સકલ કલ્યાણકારી છે. જે જે સુખતર – સુખ આપનાર હોવા ઉપરાંત સકલ કલ્યાણને આપનાર હોય છે તે તે આશ્રયણીય હોય છે. જેમ-પ્રાણાતિ પાતવિરમણ ઉદાહરણ, એ જ રીતનું આ છે, એ ઉપનય વાકય છે આ માટે આશ્રયણીય છે, એ નિગમન વચન છે. તથા એનામાં સુખ આપનાર સાધ્યત્વ હોવાથી સકલ કલ્યાણ જનકતા આશ્રયણીયતા વગર બનતી નથી, આ उ० ५५ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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