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________________ ३९८ मूलम् - तव नारायजुत्तेणं, भिर्त्तृणं कम्मर्कचुयं । मुणी विगसंगामो भवाओं परिमुच्चई ॥ २२ ॥ छाया - तपो नाराचयुक्तेन, भित्वा कर्मकञ्चुकम् । मुनिर्विगतसंग्रामो भवात् परिमुच्यते ॥ २२ ॥ टाका - ' तव नारायजुत्तेणं ' इत्यादि । समुनि:- संयमी, तपो नाराचयुक्तेन = तपः = षड्विधमान्तरं तपश्चरणं तदेव नाराचः - कर्मभेदकवाद् लोहमयो बाणस्तद् युक्तेन प्रक्रमाद् धनुषा पराक्रमरूपेण, कर्मकञ्चुकं = कर्मज्ञानावरणीयादिकं तदेव कञ्चुक इव, कर्मकञ्चुकस्तं भित्त्वा इह कर्मकञ्चुकमित्यनेन आत्मैवोद्धतः स्वस्य वैरीत्युक्तम् वक्ष्यति च उत्तराध्ययन सूत्रे पर अनुद्विग्नतारूप धैर्य को केतनधनुष के मध्यभाग में जो काष्ट की एक मूठ होती है जिसको पकड़कर धनुष चलाया जाता है- वह बना कर के ( सच्चेणं पलि मंथए - सत्येन परिबध्नीयात् ) उसको सत्यरूप डोरेसे बांधे ॥ २१ ॥ 'तव नाराय जुत्तेणं' इत्यादि । अन्वयार्थ - वह (मुणी-मुनिः) मुनि (तव नाराय जुतेणं-तपो नाराच युक्तेन ) षडूविध आभ्यन्तर तपरूपी बाण से युक्त पराक्रमरूप धनुष से (कम्मकंचुयं कर्मकचुकम् ) कर्मरूपी कंचुक को (भित्तणं-भित्वा) भेदकर (विगयसंगामो - विगतः संग्रामः) विगतसंग्रामवाला-विजयि होकर ( भवाओ परिमुच्चई - भवात् परिमुच्यते ) इस संसार से छूट जाता है। “कर्म कंचुकं " इस पद से सूत्रकार ने यह बतलाया है कि उद्धत आत्मा ही स्वयं अपना वैरी है। आगे जाकर सूत्रकार इस सूत्र में "अप्पा मित्तम અનુદ્વિગ્નતારૂપ ધૈય નેરેકે, ધનુષ્યના મધ્ય ભાગમાં જે લાકડાની એક મૂઢ હાય छेनेने पडीने धनुष्ययसावनामां आवे छे ते मनावाने सच्चेणं परिमंथएसत्येन परिबध्नीयात् मेने सत्य३य होराथी मधे ॥ २१ ॥ तवनारायजुत्तेण " - त्याहि. मन्वयार्थ– ते मुणि-मुनिः भुनि तत्रनारयजुतेणं षडविध माल्यन्तर तथ३यी माबुथी युक्त पराम३य धनुष्यथी कम्मक चुर्य-कर्मकंचुकम् भ ३पी युउने भिचणं-भित्वा लेहाने विगय संगामो - विगतसंग्रामः विजत संभाभवाजा- विनयी थाने भवाओ परिमुच्चई - भवात् पिरमुच्यते या संसारथी छटीब्लय छे. "कर्मकचुक" या पहथी सूत्रहारे थे अतान्युं छे है, उद्धत आत्मा જ પોતાના વેરી છે. આગળ જઈને સૂત્રકારે એ સૂત્રમાં अप्पामि सम 66 66 ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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