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________________ ३७६ उत्तराध्ययनसूत्रे - - ----- - मूलम्मिहिलाए चेइए वच्छे, सीयच्छाए मणोरमे। पत्तपुप्फेफलोवेए, बहूणं बहुगुणे सया ॥९॥ छाया-मिथिलायां चैत्ये वृक्षः, शीतच्छायः मनोरमः। पुत्रपुष्पफलोपेतः, बहूनां बहुगुणः सदा ॥ ९ ॥ टीका-'मिहिलाए' इत्यादि मिथिलायां मिथिलानाम्न्यां पुरि, चैत्ये उद्याने, शीतच्छाया शीतलच्छायावान् , मनोरमः मनोहरः, पत्रपुष्पफलोपेतः पत्रपुष्पफलाढयः, अतएव बहूनांआक्रान्दादि दारुण शब्द जनकता उसके अनुचित हुए विना हो नहीं सकती है, इतनामात्र यहां कारण है । यद्यपि कारण और हेतु एक ही हैं फिर भी यहां जो इनका पृथकरूप से उपादन किया है, वह साधनवाक्य की विचित्र रचना प्रदर्शनार्थ जानना चाहिये । इस प्रकार इन्द्र ने पंचअवयवरूप परार्थानुमान द्वारा नमिराज ऋषि के निष्क्रमण में अनुचितता प्रदर्शित की। तब नमिराज ऋषि ने इसका इस प्रकार उत्तर दिया॥८॥ 'मिहिलाए चेइए वच्छे'-इत्यादि । अन्वयार्थ-(मिहिलाए-मिथिलायाम् ) मिथिला नाम की नगरी में (चेइए-चैत्ये) उद्यान में (सीयच्छाए-शीतच्छायः) शीतल छायावाला (मणोरमे-मनोरमः ) मनोरम (पत्तपुप्फफलोवेए - पत्रपुष्पफलोपेतः) पत्र, पुष्प एवं फलों से युक्त इसीलिये (बहूणं-बहूनाम् ) अनेक पक्षियों અભિનિષ્ક્રમણમાં આઝંદાદિ દારૂણ શબ્દનું ઉત્પન્ન થવું એ એની અનુચિતતા વગર થવું અસંભવ છે, એટલું માત્ર અહિં કારણ છે. જો કે કારણ અને હેતુ એક જ છે, છતાં પણ અહિં જે તેનું પૃથફરૂપથી ઉપાદાન કરેલ છે તે સાધન વાકયની વિચિત્રરચના પ્રદર્શનાર્થે જાણવી જોઈએ આ રીતે ઈપાંચ અવયવરૂપ પરાર્થનુમાન દ્વારા નિમિરાજર્ષિના નિષ્કમણમાં અનુચિતતા પ્રદર્શિત કરી ત્યારે નમિરાજર્ષિએ તેને આ પ્રકારે ઉત્તર આપે, જે ૮ “ मिहिलाए चेइए वच्छे "-त्या, भ-qयार्थ-मिहिलाए-मिथिलायाम् मिथिला नगरीनचेइए-चैत्ये Gधानभा सीयच्छाए-शीतच्छायः शीत छायापाणु मजोरमे-मनोरमः भना२म पत्र पुष्फफलोवेए-पत्रपुष्पफलोपेतः ५३ ५०थे। भने साथी १२५२ मे बहूणबहूनाम् भने पक्षीय भाट सया-सदा सा बहुगुणे-बहुगुणः पाताना ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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