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उत्तराध्ययनसूत्रे भोगान् परित्यजति परित्यक्तवान् । 'बुद्धो भोगान् परित्यजति' अनेन तत्त्वज्ञानपूर्वकं भोगानां परित्यागः कृत इति ध्वनितम् भोगा हि रागद्वेषहेतवः, रागद्वेषाभ्यांज्ञानावरणीयाधष्टविधकर्मबन्धः ततश्च नरकनिगोदादिपरिभ्रमणम् , तत्र तत्र चानन्तजन्ममरणादिदुःखम् इति भोगाः परित्याज्याः । इह पुन भौगग्रहणंदृष्टिविषकृष्णसर्पवत् भोगाः सर्वथा परित्याज्याः' इति बोधयति ॥ ३ ॥ देवलोकसदृशान् वरान् भोगान् ) देवलोक जैसे उत्तम शब्दादिक भोगों को (भंजित्तु-भुक्त्वा ) भोगकर (बुद्धो-बुद्धः) जातिस्मरण ज्ञान हो जाने के बाद स्वयं प्रतिबुद्ध होते हुए (भोगे परिच्चयई-भोगान् परित्यजति ) उन भोगों का परित्याग कर दिया।
भावार्थ-नमिराजा ने जो भोगों का परित्याग किया सो वह तत्त्वज्ञानपूर्वक किया यह बात "बुद्धो भोगे परिच्चयई" इस वाक्य से सूत्रकार ने ध्वनित की है । भोग रागद्वेष के हेतु होते हैं । राग और द्वेष मे जीवों को ज्ञानावरणियादिक अष्टविध कर्मों का बन्ध होता है। उससे नरक निगोदादिक में परिभ्रमण और उस उस गति में अनंत जन्ममरणादिक के दुःखों का पात्र जीवों को होना पडता है । इसलिये भोग छोडना योग्य हैं ऐसा समझकर नमिराजा ने भोगों को छोड दिये। गाथा में " भोग" शब्द का जो पुनः ग्रहण किया है, उससे सूत्रकार का यह अभिप्राय है कि-ये भोग दृष्टिविषवाले सर्प की तरह हैं ऐसा समझकर सर्वथा छोड़ देना चाहिये ॥ ३॥ भुक्त्वा सोगवी बुद्धः ति सभर ज्ञान थाथी पाते पातानी ते प्रतिमुद्ध अनी भोगे परिच्चयई- भोगान् परित्यजति ॥ सा मैश्वयन त्यासयो.
ભાવાર્થ–નમિરાજાએ તત્વજ્ઞાન પૂર્વક ભેગેને ત્યાગ કર્યો આ पात"बुद्धो भोगे परिच्चयई" मायथा सूत्रधारे युछ लोग यशस. શ્રેષને હેતુ હોય છે. રાગ અને દ્વેષથી જીવને જ્ઞાનાવરણીયાદિક આઠ પ્રકારનાં કર્મોને બંધ થાય છે. એનાથી નરક નિદાદિકમાં પરિભ્રમણ કરવું પડે છે. અને તે તે ગતિમાં અનંત જન્મ મરણાદિકનાં દુઃખે ને ભેગવવાં પડે છે. આ કારણે ભેગ છોડવા યોગ્ય છે, એવું સમજીને નમિરાજાએ ભેગોને છેડી દીધા, ગાથામાં “ગ” શબ્દ ઉપર જે વારંવાર ભાર મુકવામાં આવ્યો છે આનાથી સૂત્રકારને એ અભિપ્રાય છે કે-લેગ એ દષ્ટિવિષવાળા કાળા સર્ષની માફક છે એવું સમજીને તેને સર્વથા ત્યાગ કરે જોઈએ છે ૩
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨