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________________ प्रियदर्शिनी टीका. अ०५ गा. १३ धनस्यादिगद्धस्य रोगावस्थायां पश्चात्तापः १४९ मूलम् -- तत्थोववाइयं ठाणं, जहा में य मणुस्सुयं । अहाँकम्मेहिं गच्छंतो, सो पच्छा परितप्पइ ॥१३॥ छया-तत्रौपपातिकं स्थानं यथा मे एतदनुश्रुतम् । यथाकर्मभिगच्छन् , स पश्चात् परितप्यते ॥ १३ ॥ टीका-'तत्थोववाइयं' इत्यादि । तत्र-नरकेषु, औपपातिकम् उपपाते भवं, स्थान=स्थितिः, यथा येन प्रकारेण पल्योपमसागरोपमरूपं भवति, एतन्मे मया गुरुसमीपे अनुश्रुतम् । अयं भावःयद्यपि गर्भावस्थायामपि तीनं दुःखं भवति, किंतु तत्र प्रायश्छेदभेदादिजनितं समय विचार करता है कि मेरी भी इसी प्रकार की गति होगी। वह इस प्रकार विचारता हुआ विशेषरूप से संतप्त होता रहता है ॥ ___ भावार्थ-बालजीव जिस समय रोगग्रस्त होता है, वह रत्नप्रभा आदि नरकों के स्थानों का तथा अन्य अज्ञानी जीवों की गतियों का वारंवार विचार कर विशेष संतप्त होता रहता है। क्यों कि वह यह समझ लेता है कि जो उनकी गति हुई है वही मेरी होनेवाली है ॥१२॥ " तत्थोववाइयं"-इत्यादि। अन्वयार्थ (तत्थ-तत्र) उन नरकों में (ओववाइयं ठाणं-औपपातिकं स्थानम् ) औपपातिक स्थान (जहा-यथा) जिस पल्योपम सागरोपमरूप से है (मे यमणुस्सुयं-मया यत् अनुश्रुतम् ) यह मैंने गुरु के समीप सुन लिया है। तात्पर्य इसका इस प्रकार है कि यद्यपि गर्भावस्था में भी तीव्र दुःख जीवों को होता है, परन्तु वहां प्रायः छेदनभेदन કે, મારી પણ આ પ્રકારની ગતિ થશે. અને આ પ્રકારે વિચરતાં વિચરતાં અત્યંત દુઃખી થયા કરે છે. ભાવાર્થ જ્યારે બાલજીવ જે સમયે રોગગ્રસ્ત થાય છે ત્યારે તે રત્નપ્રભા આદિ નરકેના સ્થાને તથા અન્ય અજ્ઞાની છની ગતિએને વારંવાર વિચાર કરી વધારે સંતસ થતો રહે છે. કેમ કે, તે એમજ સમજી લે છે કે, જે તેમની ગતિ થઈ છે તેજ ગતિ મારી થવાની છે. જે ૧૨ છે " तत्थोववाइयं "-त्या. अन्वयार्थ-तत्थ-तत्र से नरम ओववाइयं ठाणं-औपपातिकं स्थानम् भोपातिस्थान जहा-यथा 2 पक्ष्या५म सागरोयम ३५थी छे मे य मणुस्सु यं-तत् मे अनुश्रुतम् ॥ पात में शुरुनी पासेथी सोमणी छे. अवस्थामा તીવ્ર દુખ તે જીને થાય છે, પરંતુ ત્યાં ખરેખર છેદનભેદનજન્ય દુખ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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