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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे छाया-श्रुतानि मे नरके स्थानानि, अशोलानां च या गतिः । बालानां क्रूरकर्मणां प्रगाढाः यत्र वेदनाः ॥ १२ ॥ टीका-'सुया मे' इत्यादि। मे मया नरके रत्नप्रभादिपृथिव्यात्मके, स्थानानि=कुम्भी वैतरण्यसिपत्रवनादीनि, यद्वा - पल्योपमसागरोपमस्थितिरूपाणि, श्रुतानि-आचार्यादिसमीपे कर्णगोचरी कृतानि । च=पुनः अशीलानां दुराचारिणाम् , क्रूरकर्मणां हिंसादिकारिणाम् , बालानाम् अज्ञानिनाम् या गतिः-नरकनिगोदादिरूपा साऽपि श्रुता । सा गतिः कीदृशीत्याह-' पगाढा' इत्यादि। यत्र यस्यां गतौ प्रगाढा-प्रकृष्टा वेदनाः शीतोष्णादिलक्षगा भवन्ति । ममाप्येषागतिर्भविष्यतीति रोगग्रस्तः सन् बालः परितप्यते, इति भावः ॥ १२ ॥ रोगग्रस्त होता हुआ बालजन जिस प्रकार संतप्त होता है, उस प्रकार को सूत्रकार इस नीचे की गाथा द्वारा प्रकट करते हैं "सुया मे नरए"-इत्यादि । अन्वयार्थ-(मे-मया) मैंने (नरए-नरके) रत्नप्रभा आदि पृथिवीरूप नरकों में (ठाणा-स्थानानि) कुंभी वैतरणी असिपत्रवन, आदिरूप अथवा पल्योपम-सागरोपम-स्थितिरूप स्थानों को (सुया-श्रुतानि) आचार्य आदि के समीप सुना है। तथा ( असीलाणं च-अशीलानां च) दुराचारी एवं (कूरकम्माणं - क्रूरकर्मणाम् ) हिंसादिक पापकर्मों को करने वाले (बालाणं-बालानाम् ) अज्ञानी जीवों की (जा गई-या गतिः) जो गति नरकनिगोदादि होती है वह भी सुनी है (जत्थ-यत्र) जिस गति में इन जीवों को (पगाढा वेयणा-प्रगाढाः वेदनाः) प्रकृष्ट शीत उष्ण आदि की वेदनाएँ होती हैं । इस प्रकार बालजीव रोगग्रस्त होते રોગગ્રસ્ત થયેલે એ બાલજીવ જે પ્રકારે સંતાપ ભગવે છે તેને સૂત્ર४॥२ नीयनी ॥ द्वारा प्रगट २ छ-"सुयामे नरए"-त्याहि. सन्या-मे-मया में २त्नप्रभा विगैरे पृथिवी३५ नोमा ठाणाસ્થાનાનિ કુંભી, વૈતરણી, અસિપત્ર વન આદિરૂપ અથવા પલ્યોપમ સ્થિતિરૂપ स्थानाने सुया-श्रुतानि माया साधु महा२।०४ विगेरे पासेथी सांसजी छे. तभा असीलाणं च-अशीलानां च दुरायारी मने कूरकम्माण-क्रर कर्मणाम् डिसा भीना ४२वापामा बालाणं-बालानाम् श्मशान वानी जा गई-या गतिः२ गति न२४ निगाहामा थाय छे ते ५ सयु छ. जत्थ-यत्र र गतिमा सेवान पगाढाः वेयणा-प्रगाढाः वेदनाः प्रकृष्ट शीत भर Gy माहिनी વેદના થાય છે એ પ્રમાણે બાલાજીવ રોગગ્રસ્ત થતા તે સમયે વિચાર કરે છે ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨
SR No.006370
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages901
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size49 MB
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