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उत्तराध्ययनसूत्रे गानुरागात् मरणेच्छा न भवति, मरणमनिच्छन्त एव ते म्रियन्ते, विषयरागसद्भावादेव च ते चतुर्गतिकसंसारेषु पुनः पुनर्जायन्ते म्रियन्ते चेति भावः । पण्डितानां-चारित्रवतां तु सकाम-साभिलाषमिव मरणं भवति, मरणत्रासाभावादुत्सवसमानत्वाच्च मरणस्य । न तु परमार्थतः सकामं, मरणाभिलाषस्य प्रतिषिद्धत्वात् । उक्तश्च ___ अन्वयार्थ-(बालाणं-बालानाम् ) सत् असत् के विवेक से विकल जो प्राणी हैं उनके (अकामं मरणं-अकामं मरणं ) अकाम मरण (असई भवे-असकृत् भवेत् ) अनेक बार होता है । अकाममरण का अर्थ यह है कि जो मरणकी इच्छा विना होता है-काम-इच्छा, उसके बिना हुआ मरण वह अकाम मरण है । क्यों कि काम भोगों में युक्त अज्ञानी प्राणी कभी यह नहीं चाहता है कि मेरा मरण हो जाय फिर भी मरण होता ही है। इसलिये मरण की इच्छा नहीं करनेवाले का मरण अकाममरण है। विषयराग के सद्भाव से ही वे चतुर्गतिरूप संसार में बार बार जन्म लेते हैं और बार २ मरते हैं। (पंडियाणं सकामं मरणं-पण्डितानां सकामं मरणं) जो चारित्रसंपन्न जीव है उनका सकाम मरण होता है। मृत्यु के अवसर में ये मरण को एक महान् उत्सव जैसा मानते हैं, इसीलिये उन्हें मरणजन्य त्रास का जरा भी अनुभव नहीं होता है। मरण की अभिलाषा से जो मरण होता है उसका नाम सकाम मरण है। यह मरण चारित्रसंपन्न प्राणियों के होता है । इसका अभिप्राय केवल यही है कि उनके मरण उपस्थित होने पर उस समय मरणजन्य दुःख नहीं होता है इसलिये इसको इच्छा से प्राप्त हुआ जैसा कहा है।
मयार्थ-बालाणं-बालानाम् सत् असत्ना विवेथी रे व्यति वि४७० छतर्नु अकामं मरणं-अकामं मरणं मम भ२५ असई भवे-असकृत् भवेत् सनકવાર થાય છે. અકામમરણને અર્થ એમ થાય છે કે માણસ છે કે મરણ ન આવે તે સારૂ છતાં મરણ થાય છે જ. એટલે આ રીતે થતું મરણ તે અકામ મરણ છે. કેમકે, કામગોમાં યુક્ત એ અજ્ઞાની જીવ કદી પણ એવું ઈચ્છતા નથી કે મારૂં મરણ થવાનું છે, છતાં પણ મરણ તે થાય છે જ. આટલા માટે મરણની ઈચ્છા ન ધરાવનારનું મરણ થાય તે અકામ મરણ છે. વિષય રાગ પ્રત્યેની આસક્તિના કારણે તે તે જીવને ચારગતિ રૂપ સંસારમાં વારંવાર
म ५ छ, मन वारा२ भ२६ पाभ ५ छ पंडियाणं सकामं मरणंपंडितानां सकामं मरणं-२ यास्त्रि संपन्न ७१ छे तेनु स४ाम भरण थाय छे. મૃત્યુના અવસરને તેઓ મરણને એક મહાન ઉત્સવ જે માને છે. એટલા માટે તેમને મરણજન્ય દુખને જરા સરખાએ અનુભવ થતો નથી. મરણ
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૨