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________________ ४७२ " टीका -' अलगस्स - इत्यादि । अचेलकस्य = सर्वथा वस्त्ररहितस्य जिनकल्पिकस्य, तथा शास्त्रमर्यादातिरिक्तवखरहितस्य स्थविरकल्पिकस्य चेत्यर्थः । आगमे हि अल्पमूल्यकाल्पवस्त्रस्य मर्यादितस्यैव धारणात् स्थविरकल्पिकोऽप्यचैलक एवास्तीति प्रागचैलकपरीपहमकरणे निर्णीतम् । तथा उभयविधस्य मुनेस्तृणस्पर्शपरीषहेऽन्यान्यपि कारणानि सन्तीति प्रदर्शयितुमाह - ' लहस्स इत्यादि । रूक्षस्य = तैलाभ्यङ्गादिवर्जनाद् अस्निग्धशरीरस्येत्यर्थः संयतस्य= निरतिचारसंयमाऽऽराधनतत्परस्य तपस्विनः = तपश्चरणशीलस्य, अनशनादितपःसमाचरणात् कृशशरीरस्येत्यर्थः मुनेः, तृणेषु-दर्भा दिषु तदुपरिशयानस्य उपलक्षणत्वादासीनस्य चेत्यर्थः गात्रविराधना = शरीरे तृणस्पर्शजन्या पीडा भवति ॥ ३४ ॥ " उत्तराध्ययन सूत्रे " अब सूत्रकार सतरहवां तृणस्पर्शपरीषहजय का विवेचन करते हैं'अचेलगस्स ' इत्यादि । अन्वयार्थ - (अचेलगस्स - अचेलकस्य ) सर्वथा वस्त्ररहित जिनकल्पिक, तथा शास्त्र की मर्यादा के अतिरिक्त वस्त्र नहीं रखने वाले स्थविरकल्पिक मुनि के ( लूहस्स - रूक्षस्य ) कि जिन का तेल आदि की मालिश करना वर्जित होने से शरीर बिलकुल रूक्ष हो रहा है, एवं (संजयस्स - संयतस्य ) जो निरतिचार संयमकी आराधना करने में तत्पर रहते हैं, तथा (तवसिणो- तपस्विनः) अनशन आदि तपों के करनेवाले होने से कृश शरीर वाले हैं, और जो (तणेसु सयमाणस्स - तृणेषु शयानस्य ) दर्भादिक तृणों के ऊपर सोते हैं उपलक्षण से उपर बैठते हैं उनके (गाय विराहणा- गात्रविराधना ) शरीर में तृणस्पर्शजन्य पीड़ा होती है । હવે સૂત્રકાર સત્તરમાં તૃણુસ્પ પરીષહ જીતવાનું વર્ણન કરે છે. 'अचेलगरस' - त्याहि. अन्वयार्थ—अचेलगत्स - अचेलकस्य सर्वथा वस्त्र रहित अनहिप, तथा शास्त्रनी भर्याद्वाथी अतिरिक्त वस्त्र न रामवावाजा स्थविरदिप भुनि लहस्सક્ષક્ષ્ય જેને તેલ આદિની માલીશ કરવાનું વંત હાવાથી શરીર ખીલ ३क्ष मनी जयेस छे. संजयस्स - संयतस्य भने के निरतियार संयमनी अराधना ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર ઃ ૧ वामां तप्तर रहे छे तबसिणो- तपस्विनः तथा अनशन याहि तथ उरनार हावाथी दृश शरीरवाजा छे भने ने तणेसु सयमाणस्स - तृणेषु शयानस्य हर्लाहि वृशोनी उपर सुवे छे, उपलक्षथी उपर मेसे छे, तेभना गायविहारणा - गात्रविराधना शरीरमां तृथुस्पर्शजन्य पीडा थाय छे.
SR No.006369
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages855
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size45 MB
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