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२१७-२१८
विषय
पृष्ठाङ्क४१ निरर्थक भाषण बोलने का निषेध और उस विषयमें दृष्टान्त
२०५-२०७ ४२ मार्मिक भाषण बोलनेका निषेध और धनगुप्त श्रेष्टिका दृष्टान्त
२०८-२१६ अन्य का संसर्गसे होनेवाला दोषका परिहार
और ब्रह्मचारिका कर्तव्य ४४ ब्रह्मचारिका कर्तव्य और शिष्यों को शिक्षा २१९-२२७ ४५ एषणा समिति विषयक विनय धर्मका कथन २२८-२३३ ४६ गृहेषणा समिति की विधि
२३४-२३५ ४७ ग्रासैषणा की विधि
२३६ ४८ वचनकी यतना (नियमन) की विधि २३६-२४१ ४९ विनीत शिष्यको और अविनीत शिष्य को उपदेश
देनेमें फल का भेद और कुशिष्यकी दुर्भावना २४२-२४५ ५० सत् शिष्य की भावनाका वर्णन ५१ विनीत शिष्य को विनय सर्वस्व का उपदेश द्वारा शिक्षा का वर्णन
२४७-२४८ बुद्धोपघाती न बननेके विषयमें वीर्योल्लासाचार्य का दृष्टान्त
२४९-२५३ आचार्य महाराज कुपित होनेपर शिष्यके कर्तव्य का उपदेश
२५४-२५८ अध्ययन के अर्थ का उपसंहार और आचार्यादिकों का प्रसन्न होनेपर फल २५९-२६० श्रुतज्ञान के लाभका फल और श्रुतज्ञान का लाभ होनेपर मोक्षप्राप्ति अथवा देवत्व प्राप्तिका वर्णन और प्रथमाध्ययन समाप्ति
२६१-२६५ ५६ द्वितीयाध्ययन प्रारम्भ-बाईस परीषहों का प्रस्ताव
२६६-२७२
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ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૧