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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० १ गा. ४४-४५ शिष्यकर्त्तव्यतत्फलं च २५७ मूलम् - वित्ते' अचोइए निच्चं, खिप्पं हवंइ सुचाईए । जहोइड सुकयं, किच्चाई कुवेई सयाँ ॥४४॥ छाया-वित्तः अनोदितः नित्यं, क्षिप्रं भवति सुनोदितः। यथोपदिष्टं सुकृतं, कृत्यानि करोति सदा ॥ ४४ ॥ टीका-'वित्ते' इत्यादि वित्तः विनयादिगुणेन प्रसिद्धः शिष्यः, अनोदितः अप्रेरित एव गुरुकार्येषु नित्यं सर्वदा, प्रवर्तते । कदाचित् स्वयमेव कार्य कुर्वाणः सुनोदितः गुरुणा सुष्टु प्रेरितश्चेत् स विनयवान् शिष्यः क्षिप्रंक्षिपकृद् शीघ्रमेव-कार्यकारी भवति । अयं भावः-कार्य कुर्वन् आचार्येण प्रेरितश्चेद् एवं न ब्रूते-'अहं तु कार्यकरोम्येव, किं 'वित्ते' इत्यादि। __ अन्वयार्थ-(वित्ते-वित्तः) विनय आदि गुणों से प्रसिद्ध शिष्य (अचोइए-अनोदितः) विना कहे ही-प्रेरणाकिये विना ही-अपने गुरु महराज के कार्यों में (निच्च-नित्यं) सर्वदा प्रवृत्ति शील रहा करता है । (सुचोइए-सुनोदितः) गुरु महाराज अपने कार्य को करने की प्रेरणा करें तो विनयवान् शिष्य का कर्तव्य है कि वह (खिप्पं हवइक्षिप्रं भवति ) गुरु महाराज का कार्य यतनापूर्वक शीघ्र करे। ऐसा शिष्य गुरु महाराज जब कार्य करने के लिये कहते हैं तब ऐसा नहीं कहता है कि 'मैं तो कार्य कर ही रहा हूं आप क्यों कहते हैं ' । वह तो (सया-सदा सर्वदा जो कुछ भी करने को कहा जाता है उसे ही कहने के अनुसार (सुकयं-सुकृतं) जैसे वह अच्छी रीति से हो सकता है उसी वित्ते इत्यादि अन्वयार्थ-वित्त-वित्तः विनय शाह गुलथी प्रसिद्ध शिष्य अचोइएअनोदितः । १२ प्रेरण। ४ा वा-यातना शुरु भडा२।४ मां निच्चंनित्य सह सह प्रवृतिशील २॥ ४२ छ. सुचोइए-सुनोदितः शुरु भडारा પિતાનું કાર્ય કરવા માટે પ્રેરણા કરે તો વિનયવાન શિષ્યનું કર્તવ્ય છે કે તે खिप्पं हवइ-क्षिप्रं भवति शुरु भडाना ते ४ायने यत्नापू तुरत १ ४२१॥ માંડે. વિનયી શિષ્ય ગુરુ મહારાજના તરફથી કામ માટેનું સૂચન થતાં એવું કદી પણ કહેતા નથી કે, હું કામ તે કરી રહ્યો છું, આપ શા માટે કહો छ. ते तो सया-सदा सहा मेने वामां आवे ते मत वा मनुसार सुकयं-सुकृतं भ त सारी रीत यश सेशते किच्चाई कव्वइ-कृत्यानि उ०३३ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૧
SR No.006369
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages855
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size45 MB
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