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________________ १४२ उत्तराध्ययनसूत्रे ननु कः सूत्रशब्दार्थः ?-उच्यते-सूचयतीति सूत्रम् , यथा सूची सूत्रेण सूच्यते, सूचीसंलग्नं यत् सूत्रं तदेव मूच्याः सूचकं प्रबोधकं भवति, तथाऽर्थसंबद्धं मूत्रं, वाच्यवाचकभावसम्बन्धेन यावानर्थः सूत्रे विद्यमानस्तस्य तस्यार्थस्य सूचकं सूत्रम्। एवमर्थस्य सूचनात् सूत्रम् ॥ १ ॥ अथवा-सीव्यतीति सूत्रम् । यथा-सूत्र-तन्तुः अङ्गरक्षिकादीनि सीव्यति, एवमर्थं च पदं सीव्यति-योजयति-एवं च सीवनात् सूत्रमिति ॥ २॥ अथवा-स्रवतीति सूत्रम् यथा-चन्द्रकान्तमणिः चन्द्रकिरणसंनिधानाज्जलं स्रवति-प्रादुर्भावयति । एवं सूत्रमप्याचार्यसंनिधानादर्थं प्रस्रवति तथा च स्रवणात् सूत्रमिति ॥ ३ ॥ अथवा-सरतीति सूत्रम् , अष्टविधं कर्म सरतिनिर्गच्छति येन तत् सूत्रम् ॥ ४ ॥ ॥ इति प्रथमं सूत्रशब्दार्थद्वारम् ॥ १॥ सूचयतीति सूत्रम् सूत्र शब्द का अर्थ-जिस प्रकार सूई संलग्न सूत्र सूई का प्रबोधक होता है उसी तरह अर्थ संबद्ध सूत्र वाच्य वाचकभाव संबंध से जितना २ अर्थ अपने में विद्यमान होता है उतने २ अर्थ का सूचक होता है, इस तरह " सूचयतीति सूत्रम् " अर्थ का सूचक होने से सूत्र कहा गया है । यह व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है । अथवा-"सीव्यतीति सूत्रम्"-जिस प्रकार डोरा अंगरक्षिका-कुर्ता-आदि वस्त्रों को सीता है परस्पर में जोड़ देता है-उसी तरह सूत्र भी अर्थ को योजित कर देता है । अथवा-"स्त्रवतीति सूत्रम्"-जिस प्रकार चंद्रकान्तमणि चंद्र किरणों के संपर्क से द्रवित हो जाता है-पानी छोड़ता है-उसी प्रकार सूत्र भी आचार्य के संनिधान से अर्थ को अपने में प्रकट कर देता है। अथवा-"सरतीति सूत्रम्' સૂત્ર શબ્દને અર્થ-જે રીતે સોય સંલગ્ન સૂત્ર સોયને પ્રબોધક બને છે તેવી રીતે અર્થ સંબદ્ધ સૂત્ર વાચ્ય વાચક ભાવ સંબંધથી જેટલા જેટલા અર્થ તેનામાં વિદ્યમાન હોય છે, એટલા એટલા અર્થને સૂચક હોય છે. " सूचयतीति सूत्रम् " अथनी सूय४ वाथी २४ सूत्र वामां मावत छ. मा व्युत्पत्तिसय २० छ. मथा-सीव्यतीति सूत्रम् २ शत हो। અંગનું રક્ષણ કરનાર કુર્તા આદિ વાને સીવે છે, પરસ્પરથી જેડી દે छ. मेवी रीत सूत्र ५५] मथने योनार डाय छे. मथवा स्रवतीतिसूत्रम् જે રીતે ચંદ્રકાન્ત મણ ચંદ્રકિરણેના સંપર્કથી દ્રવિત બને છે. પાણી છોડે છે–તે પ્રકારે સૂત્ર પણ આચાર્યના સંનિધાનથી અર્થને કે જે પિતાનામાં સમાયેલ છે તે પ્રગટ કરી દે છે અથવા સલરિ જેના સેવનથી-ઉપાસના ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૧
SR No.006369
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages855
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size45 MB
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