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________________ आचारमणिमञ्जूषा टीका अ. ९ उ. २ गा. २३ २१७ भिमानी, पिशुनः परगुणासहिष्णुतया प्रीतिं शून्यां करोतीति निरुक्तवृत्त्या पिशुनः प्रीतिभेदकः परनिन्दक इत्यर्थः, साहसिकः अविमृश्यकारी, हीनप्रेषणःविनष्टनिदेशः गुर्वादिनिदेशबहिर्वर्ती, अदृष्टधर्मा = अज्ञातप्रवचनधर्मा, विनयेऽकोविदः = विनयगुणानभिज्ञः, असंविभागी = आनीतं प्रशस्यमन्नादिकमसंविभज्य= अन्यस्मै साघवे अदत्वा स्वयं तदुपभोगशीलः, तस्य क्रोधादिदुर्गुणयुक्तस्य हु-निश्वयेन मोक्षो नास्ति न भवति । 'चंडे' इति पदेन "खरतर करनिकरकृशानुकीलातिशुष्ककेदारे शाल्यादिवीजवत् क्रोधकृशानुसंतप्तह्रदये विनयादिगुणबीजं न प्रहरोहति," इति मूचितम् 'मइइडिगारवे' इति पदेन मानान्धानां मुक्तिमार्गगमनानधिकारित्वं ध्वनितम् । 'पिसुणे' इति पदेन द्वितीयमहावतभङ्गः सूचितः। 'साहस' वाला, बिना सोचे विचारे कार्य करने वाला, गुरु आदि की आज्ञासे बाहर; जिनप्रवचन से अनजान, विनय से अनभिज्ञ तथा असंविभागी अर्थात् लाया हुआ आहार आदि अन्य मुनियों को यथासंविभाग करके नहीं देने वाला है उस दुगुणी शिष्य को निश्चय ही मोक्ष नहीं प्राप्त होता। _ 'चंडे' पदसे यह सूचित किया है कि जैसे मार्तण्ड (सूर्य) की प्रचण्ड किरणों से सर्वथा सूखी हुई क्यारी में बीज अंकुरित नहीं हो सकता, उसी प्रकार क्रोधाग्नि से संतप्त हृद्य में विनय आदि गुण उत्पन्न नहीं हो सकते। __ "महइडिगारवे"-पदसे यह प्रगट किया है कि अहंकारी नर, मोक्षमार्ग में गमन करने का अधिकारी नहीं होता। "पिसुणे"-पदसे કાર તથા પારકી નિન્દા કરવાવાળા, પૂરે વિચાર કર્યા વિના કામ કરવાવાળા, ગુરુ આદિની આજ્ઞાથી બહાર, જિન પ્રવચનના અજાણ, વિનય ધર્મના અજાણ તથા અસંવિભાગી, અર્થાત્ આહાર આદિ ને લાવ્યા હોય તેમાંથી અન્ય મુનિઓને યથાસંવિભાગ કરીને નહી આપવા વાળા એવા દુર્ગુણ શિષ્યને નિશ્ચયથી (નકકી) મિક્ષ પ્રાપ્ત થતી નથી. _ 'चंडे' पहथी से सूयना ४३री छ है :-२वी शते सूर्य ना प्रय ४ि२ थी એકદમ સૂકાઈ ગયેલી કયારીમાં પડેલું બીજ અંકુરિત થઈ શકતું નથી. તે પ્રમાણે ક્રિોધાગ્નિથી સંતપ્ત હૃદયમાં વિનય આદિ ગુણ ઉત્પન્ન થઈ શકતા નથી. 'मइइडिगारवे' पहथी से प्रगट यु छ हैं:-मारी भास मोक्ष भाग भां मन ४२वाना मधिलारी या नथी. 'पिसुणे -५४थी सत्य महानता શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૨
SR No.006368
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages287
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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