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अध्ययन ३ गा. ८ (५२) अनाचीर्णानि शुरणादिः (३५), मूल शिफा (३६), च-पुनः, सचित्तं सजीवम्,फल =कर्कटी-त्रपुषादिकम् (३७), च-तथा बीज-तिलादि, आमकम्-सचित्तम् (३८),। अत्रानन्तकायादिविराधनादिदोषा जायन्ते ॥७॥ मूलम्-सोवच्चले सिंधवे लोणे रुमालोणे य आमए
सामुद्दे पंसुखारे य कालालोणे य आमए ॥८॥ छायाः-सौवर्चलं लवणो, रुमालवणश्चामकः ।
सामुद्रः पांशुक्षारश्च, काललवणश्चामकः ॥८॥ सान्वयार्थः-आमए सचित्त (३९) सोवच्चले सौवर्चलं-संचरनमक (४०) सिंघवे लोणे-सैन्धव-सींधानमक (४१ रुमालोणे रुमानदीसे निकला हुआ नमक (४२) सामुद्दे समुद्री नमक य=और (४३) पंसुखारे-ऊपर नमक य और आमए-सचित्त (४४) कालालोणे-काला नमक । भावार्थ-उल्लिखित नमकोंका सेवन करने से पृथ्वीकाय आदिकी विराधना होती है ॥८॥
टीका-सुवर्चले देशविशेषे भवः सैवर्चल: रुचकलवणः (३९),
सिन्धुनधुपलक्षितदेशीयपर्वते भवः सैन्धवालवणः=लुनाति-छिनत्ति दूरयति कफादिकमिति लवणः, इदं सौवर्चलादेविशेषणपदम् (४०),
(३२) सचित्त मूलका सेवन करना । (३३) सचित्त अदरख (आदा) का सेवन करना । (३४) सचित्त इक्षुखण्डका सेवन करना । (३५) सचित्त सूरण आदि कन्दोंका सेवन करना । (३६) सचित्त मूलका सेवन करना । (३७) सचित्त ककड़ी खीरा आदि फलोंका सेवन करन । (३८) सचित्त बीजका=तिल आदिका सेवन करना ॥७॥ (३९) सचित्त रुचक (सौवचेल सोंचर) नमकका सेवन करना । (४०) सचित्त सैन्धव (सेंधा) नमकका सेवन करना । (33) सचित्त माहुनु सेवन ७२यु: (३४) सयित्त शेडन पतीsi-४४i-नु सेवन ४२ (૩૫) સચિત્ત સૂરણ આદિ ક દેનું સેવન કરવું. (३६) सायत्त भूगनु सेवन ४२. (३७) सथित्त । भी। माह सानु सेवन ४२९. (३८) सथित्त मी तर साहिन सेवन ४२ (७) (36) सयित्त ३५४ सूर (सोव -सय) नु सेवन २९. (४०) सथित्त सिंघासूनु सेवन ४२j.
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧