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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रे छाया-अथ का सा प्रयोगसम्पत् ? प्रयोगसम्पच्चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा१ आत्मानं विदित्वा वादं मयोक्ता भवति, २ परिषदं विदित्वा वादं प्रयोक्ता भवति, ३ क्षेत्रं विदित्वा वादं प्रयोक्ता भवति, ४ वस्तु विदित्वा वादं प्रयो. क्ता भवति । सेयं प्रयोगसम्पत ॥ सू० ७ ॥
टीका-'से किं तं'-इत्यादि । अथ-सामागुक्ता प्रयोगसम्पत् का कि स्वरूपा ? प्रयोगसम्पच्चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-१ आत्मानं-निजं-अहं प्रमाणनयादिस्वरूपज्ञाननिपुणोऽस्मि न वे ?'-ति समर्थमसमर्थ वा विदित्वा वादं-स्वमतस्थापनलक्षणम्, उपलक्षणाद्धर्मकथा-सामाचारीप्रभृतिमरूपणं प्रयोक्ता भवति । २ परिषद सभां ज्ञाऽज्ञादुर्विदग्धादिरूपां सौगत-साइख्य चार्वाककापालिकादिरूपां वा
मतिसम्पदा वाला ही वादप्रयोगसम्पदा वाला हो सकता है अतः प्रयोगसम्पदा का निरूपण करते हैं-'से किं तं पोग०' इत्यादि।
प्रयोगसम्पदा चार प्रकार की है । (१) आत्मा को जान कर वाद का प्रयोग करता है, (२) परिषद को जानकर वाद का प्रयोग करता है, (३) क्षेत्र को जानकर वाद का प्रयोग करता है, (४) वस्तु को जानकर वाद का प्रयोग करता है।
[१] 'आय' आत्मानं, अपनी आत्मा को-"मैं प्रमाण नय आदि स्वरूप के ज्ञान में निपुण हूँ या नहीं ?" ऐसे समर्थ अथवा असमर्थ जानकर अपने मतको स्थापन करता है। उपलक्षण से धर्म की कथा सामाचारी आदि का प्रयोग करने वाला होता है। [२] 'परिसं' [परिषदं] यह सभा, ज्ञा - जानकार है, अथवा अज्ञा-अजानकार है अथवा दुर्विदग्ध-अनघड है, ऐसा जानकर, तथा यह सभा बौद्ध है,
અતિસંપદાવાળા થયા પછી જ પ્રયાગ સમ્મદીવાળા થઈ શકાય છે. આથી प्रयोगस पहार्नु नि३५४४ ४२ छ- 'से किं तं पओग' त्याह
प्रयोगसम्पदा या२ २नी छ. (१) मात्भाने arelने पछीथी प्रयो। ४३ छ (२) परिषद ने Men पछीथी प्रयो। ४२ छ. (3) क्षेत्रने arena पछीथा પ્રયોગ કરે છે. (૪) વસ્તુને જાણીને પછીથી પ્રવેગ કરે છે.
'आयं =आत्मानं पाताना मामाने प्रभा, नय माहि २१३५ना જ્ઞાનમાં નિપુણ છુ કે નહિ ?” એ સમર્થ અથવા અસમર્થ જાણીને પિતાના મતનું સ્થાપન કરે છે. ઉપલક્ષણથી ધર્મની કથા સમાચારી આદિને પ્રચાગ કરવાવાળો હોય છે. २ 'परिसं' = (परिषदं) भासला ज्ञा- २ छे या अज्ञा- २
શ્રી દશાશ્રુત સ્કન્ધ સૂત્ર