SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५० ____३ पुष्पितासूत्र सन्तुष्टभूपालदत्तपट्टबन्धपरिभूषितराजकल्पाः माण्डविका: छिन्नभिन्नजनाश्रयविशेषो मण्डवस्तत्राधिकृताः, 'माडम्बिकाः' इति च्छायापक्षे तु ग्रामपञ्चशतीपतय इत्यर्थः, यद्वा-सार्धक्रोशद्वयपरिमितमान्तरैर्विच्छिद्य विच्छिद्य स्थितानां ग्रामाणामधिपतयः, कौटुम्बिकाः बहुकुटुम्बप्रतिपालकाः, इभ्याः इभो-हस्ती तत्पमाणं द्रव्यमर्हन्तीति, तथा ते च-जघन्य-मध्यमो-त्कृष्टभेदात् त्रिप्रकाराः तत्र हस्तिपरिमितमणि-मुक्ता-प्रवाल-सुवर्ण-रजतादिद्रव्यराशिस्वामिनो जघन्याः, हस्तिपरिमितवज्र-मणि-माणिक्य-राशिस्वामिनो वे राजाके समान पट्टबन्धसे विभूषित लोग तलवर कहलाते हैं। जो वस्ती छिन्न भिन्न हो उसे मण्डव और उसके अधिकारीको माण्डविक कहते हैं । ' माडंबिय ' की छाया यदि 'माडम्बिक' की जाय तो माडम्बिकका अर्थ 'पाँच सौ गाँवोंका स्वामी' होता है। अथवा ढाई ढाई कोसकी दूरीपर जो अलग अलग गाव वसे हों, उनके स्वामीको ' माडम्बिक' कहते हैं। जो कुटुम्बका पालन पोषण करते हैं, या जिनके द्वारा बहुतसे कुटुम्बोंका पालन होता है, उन्हें ' कौटुम्बिक' कहते हैं। इभका अर्थ है हाथी, और हाथीके बराबर द्रव्य जिसके पास हो उसे ' इभ्य कहते हैं। जधन्य मध्यम और उत्कृष्टके भेदसे इभ्य तीन प्रकारके हैं। जो हाथीके बराबर मणि, मुक्ता, प्रवाल (मूंगा ) सोना, चादी आदि द्रव्य-राशिके स्वामी हों થઈને જેને પટ્ટાબંધ આપે છે તે રાજાઓના જેવા પદૃબંધથી વિભૂષિત લેકો તલવર કહેવાય છે. જેની વસતી છિન્ન ભિન્ન હોય તેને મંડવ અને તેના અધિકારીને भांडवि : छ. 'माडविय' नी छाया ने माडम्बिक' ४२वामी माने तो 'माडम्बिक' न पायो आमान पक्षी' । अर्थ थाय छे. अथवा अढी मढी ने अतरे २ opi ngi nी १८यां डाय तेना धान माडम्बिक हे છે જે કુટુમ્બનું પાલન-પોષણ કરે છે અથવા જેની દ્વારા ઘણાં કુટુઓનું પાલન थाय छ, तन औटुमि हे छे. “इभ' । अर्थ थी' छ, भने थाना २९ द्रव्य नी पासे डेय, तेन 'इश्य' ४ छ. धन्य, मध्यम भने टना ભેટ કરીને ઈલ્ય ત્રણ પ્રકારના છે. હાથીની બરાબર મણિ, મેતી, પરવાળાં, સોનું શ્રી નિરયાવલિકા સૂત્ર
SR No.006357
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1948
Total Pages482
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy