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पूष्पचूलिका नामक चतुर्थ वर्गमें भी दस देवियोंके नामसे दस अध्ययन हैं। उन दसों देवियोंका नाम-श्री ( १ ) ही ( २ ) धी (३ ) कीर्ति (४) बुद्धि ( ५ ) लक्ष्मी ( ६ ) इलादेवी (७) सुरादेवी (८) रसदेवी ( ९) और गन्धदेवी ( १० ) है। ये दसों देविया भगवानके दर्शनके लिये आयीं और नाट्यविधि दिखाकर अपने २ स्थान पर चली गयीं । गौतम स्वामीने इन देवियोंको ऋद्धि प्राप्ति के बारेमें पूछा । भगवानने इन सबोंके पूर्व भवका वर्णन किया, और कहा-हे गौतम ! ये सभी देवलोकसे च्यव कर महाविदेह क्षेत्रमें जन्म लेंगी और सिद्ध होकर सभी दुखोंका अन्त करेंगी।
इसका पाँचवाँ वर्गका नाम वृष्णिदशा वर्ग है। इसमें बारह अध्ययन हैं। ये बारहों अध्ययन बारह कुमारोंके नामसे हैं। उन कुमारोंका नामनिषध ( १ ) मायनी ( २ ) वह ( ३ ) वह ( ४ ) पगता (५) ज्योति (६) दशरथ (७) दृढरथ (८) महाधन्वा (९) सप्तधन्वा (१०) दशधन्वा और शतधन्वा है। इनमें निषधकुमारका वर्णन इस प्रकार है-निषध कुमार राजा बलदेव और रानी रेवतीके पुत्र थे। इनका विवाह पचास राजकन्याओंके साथ हुआ और वह अपने उपरी महलमें सुख पूर्वक रहने लगे। एक समय द्वारकाके नन्दन वन उद्यानमें भगवान अर्हत् अरिष्टनेमि पधारे। भगवानके दर्शनके लिये कृष्ण वासुदेव आदि नन्दन वन उद्यानमें गये । निषधकुमारको भी भगवानके पधारनेका समाचार ज्ञात हुआ। वह भी भगवानके दर्शनके लिये गये। धर्म कथा सुनकर श्रावक धर्म स्वीकार कर अपने घर लौट गये । भगवानका अन्तेवासो वरदत्त अनगार निषधकुमारकी सौम्यता देख मुग्ध हो गये ।
और निषधकुमार को यह सौम्यता और ऋद्धि आदि कैसे प्राप्त हुई ? इस बारेमें भगवानसे पूछा । भगवानने निषधकुमारके पूर्व भवका वर्णन किया । वरदत्तने पूछा-हे भदन्त ! यह निषधकुमार आपके समीप प्रवजित होगा ? भगवानने कहा-हा, वरदत्त ! यह निषधकुमार मेरे समीप प्रनजित होगा। इसके बाद भगवान जनपदमें विचरने लगे। एक समय निषधकुमार पोषधशालामें दर्भके आसन पर
શ્રી નિરયાવલિકા સૂત્ર